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छत्तीसगढ़ - प्रबंध संचालक ने शिक्षा को किया शर्मसार, किताबी कागज की खरीदी में किया भ्रष्टाचार

छत्तीसगढ़ 24 सितंबर 2015 (जावेद अख्तर). छत्तीसगढ़ में घोटालों की तादाद बढ़ ही रही है, इसी कड़ी में अब छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम के अधिकारियों के ऊपर भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाया गया। आरोप है कि पाठ्य पुस्तक निगम के प्रबंध संचालक ने कागज की खरीदी में नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए खुलेआम मानकों के विपरीत जाकर खरीदी की, जबकि कागज की गुणवत्ता तय मानकों से आधी है। इस घोटाले पर माननीय उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गई है जिसे माननीय न्यायालय ने स्वीकार कर लिया है।

यही नहीं उस पर निविदा में कागज की कीमत भी अधिक लिखी है जबकि कम दाम भरने वाली निविदा को टेंडर नहीं दिया गया यानि कि 8 रूपए वाले कागज को 10 रूपए में खरीदा गया। इससे स्पष्ट और खुलेआम भ्रष्टाचार और क्या हो सकता है जिसमें प्रबंध संचालक ने अपने मनमुताबिक निविदा भरवाई और जो अधिक दाम की निविदा थी उसे टेंडर जारी कर दिया। प्रदेश में इस तरह के कई मामले पहले भी सामने आ चुके हैं इसलिए राज्य सरकार के शासनकाल के दौरान ऐसे गबन व घोटालों का होना आम सी बात होती जा रही है। इससे पहले भी लोक निर्माण विभाग, जल संसाधन विभाग, गृह निर्माण मंडल, खाद्य विभाग, नागरिक आपूर्ति निगम आदि जैसे विभागों में भी ऐसे बड़े बड़े घोटाले व भ्रष्टाचार सबके सामने आ ही चुका है। बहरहाल पाठ्य पुस्तक निगम में हुए गबन व घोटाले की बकायदा शिकायत भी की गई थी मंत्री, सचिव व विभाग के उच्चाधिकारियों सहित अधिकारियों को मगर भ्रष्टाचार गबन व घोटालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई और न ही मामले की जानकारी लेनी ही जरूरी समझी।

राज्य सरकार व विभाग के उच्चाधिकारियों की उदासीनता, लापरवाही व हठधर्मिता से हताश व निराश आरटीआई कार्यकर्ता ने इस मामले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर दी। हालांकि याचिका दायर किए हुए लगभग ढाई माह बीत चुके हैं मगर एक ही पेशी हो पाई है। चूंकि न्यायालय में पहले से ही इतने अधिक मामले लंबित हैं कि एक बार पेशी होने के बाद 3-4 महीनों की प्रतीक्षा के बाद ही दूसरी पेशी का समय आता है। इसलिए दूसरी पेशी पर संभावना की जा सकती है कि माननीय न्यायालय जांच का आदेश दे सकता है अगर ऐसा हुआ तो यकीन जानिये कि कई बड़े नामी गिरामी हस्तियों को हवालात की हवा खानी पड़ ही जाएगी। छत्तीसगढ़ में पाठ्य पुस्तक निगम में हुए बहुत ही बड़े घोटाले पर माननीय उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गई जिसे माननीय न्यायालय ने 16 जुलाई को स्वीकार कर लिया था। याचिकाकर्ता शेष नारायण शर्मा ने इसकी जानकारी प्रेसवार्ता के दौरान दी थी। उन्होंने बताया कि पाठ्य पुस्तक निगम के प्रबंध संचालक के द्वारा अपने ही विभाग के नियमों का उल्लंघन करते हुए वर्ष 2012 से 2015 तक में हजारों करोड़ रुपए का गबन व घोटाला किया गया है। याचिकाकर्ता ने बताया कि इस भ्रष्टाचार की जानकारी उच्च अधिकारियों व विभाग के सचिव व मंत्री तक दी गई मगर कोई कार्रवाई नहीं की गई और विभाग में भ्रष्टाचार व गबन का घिनौना खेल बदस्तूर जारी रहा, जिसके कारण उन्हें उच्चतम न्यायालय की शरण लेनी पड़ी। न्यायालय में याचिका की पैरवी खुद याचिकाकर्ता ने की। याचिका की पहली सुनवाई 26 अगस्त को हुई थी। याचिका की स्वीकृति न्यायमूर्ति प्रीतिकर दिवाकर और आईएस उबोवेजा की युगलपीठ ने दी।

आरटीआई कार्यकर्ता शेष नारायण शर्मा ने बताया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने पर पाठ्य पुस्तक निगम के पूर्व महाप्रबंधक अनिल राय ने देख लेने की धमकी तक दी थी बावजूद इसके शेष नारायण शर्मा पीछे नहीं हटे और उन्होंने जनहित याचिका दायर कर दी। धमकी मिलने के बाद उन्होंने आईजी से शिकायत की शिकायत करने के बाद भी भट्टी थाना भिलाई में लिखित रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई। सबूत के तौर उन्होंने फोन द्वारा बातचीत की रिकार्डिंग सुनाई। शेष नारायण शर्मा ने बताया कि पाठ्य पुस्तक निगम में कागज की खरीदी में करीब 37 लाख का घपला प्रतिवर्ष किया गया। मामले का खुलासा करने के बाद उन्होंने आपराधिक अन्वेषण ब्यूरो में भी लिखित रूप से सूचना दे दी है। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ऐसे बड़े घोटालेबाजों को बचाने का पूरा प्रयास करती है। धमकी से लेकर पैसों का लालच तक दिया जाता है। अगर फिर भी बात नहीं बनती है तो पुलिस द्वारा परेशान करवाया जाता है। पुलिस के खिलाफ शिकायत करने पर आईजी व कमिश्नर भी कुछ नहीं करते हैं सिवाय आश्वासन देने के।

राज्य सरकार के मंत्री व सचिव के समक्ष कितने भी प्रमाण प्रस्तुत कर दिया जाए मगर उनकी कानों पर जूं तक नहीं रेंगती है और बस एक ही डायलॉग बोलकर चलता कर देते हैं कि आप शिकायत जमा करवा दीजिए, मैं देखता हूँ कि मामले पर क्या हो सकता है। उसके बाद तो बंगलो के चक्कर लगाते लगाते चप्पलें घिस जाती हैं साल बदल जाते हैं मगर आश्वासन के सिवा कुछ भी नहीं मिलता है। कई कई चक्कर मारने के बाद एकाध बार ही मिलते हैं और बमुश्किल एक मिनट का भी समय नहीं देते हैं। चाहे कितना भी बोल लो, कह लो, प्रमाण प्रस्तुत कर दो मगर इनका रव्वैय्या और कार्यप्रणाली नहीं बदलती है। ढाक के तीन पात सटीक मुहावरा बैठता है राज्य सरकार व मंत्रियों पर। कितनी ही बार आपको समय दे देंगे और आप बैठे रहो चार छः घंटे मगर आपसे मिलने के लिए 2 मिनट नहीं मिल पाता है। ऐसे में आम आदमी हताश व निराश हो जाता है और आर्थिक स्थिति भी इतनी अधिक सुदृढ़ नहीं होती है कि चार छः बार चक्कर लगा सके सो थक हार कर या तो चुपचाप अपने घर बैठ जाओ या फिर न्यायालय की शरण में जाओ। इसके अलावा अन्य कोई चारा ही नहीं बचता है। राज्य सरकार, मंत्री, सचिव व विभाग के उच्चाधिकारियों की ऐसी लापरवाही और मनमानी वाले रव्वैय्ये से पूरा प्रदेश बुरी तरह त्रस्त व हलकान है।