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रायपुर - ई-चालान में नियमों को कर दरकिनार, 18 हजार मामलों में आरटीओ ने किया भ्रष्टाचार

छत्तीसगढ़ 16 सितम्‍बर 2015 (जावेद अख्तर). छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के आरटीओ आफिस में ई-चालान घोटाले की जांच कर रही पुलिस ने केवल रायपुर में ही धोखाधड़ी के 18 हजार मामले पकड़े हैं। फर्जीवाड़े के प्रकरणों की इतनी ज्यादा संख्या को देखते हुये पुलिस सभी मामलों को एक में ही जोड़कर कार्रवाई कर रही है, सूत्रों ने दावा किया कि मामले की उच्च स्तरीय जांच होने पर और भी बड़े घोटाले सामने आयेंगे। 
उल्लेखनीय है कि सरकार के करीबी अफसरों ने परिवहन विभाग को हाईटेक करने की योजना बनाकर आरटीओ दफ्तरों को कैशलेस करने का प्रयास किया। ई-चालान के जरिये टैक्स समेत अन्य शुल्क का भुगतान लिया जाने लगा। पुलिस को जब इतने व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार की सूचना मिली तो तत्काल पुलिस ने रायपुर आरटीओ की बारीकी से जांच पड़ताल शुरू कर दी जिसके तहत 18 हजार मामले पकड़े गए जिनमें ई-चालान द्वारा रकम जमा करने व प्रमाण पत्र जारी करने में नियमों को दरकिनार करते हुए प्रक्रिया अपनाई गई थी। ई-चालान के द्वारा शासन ने तत्काल सुविधाएं देने की मंशा के तहत यह कार्यप्रणाली को अपनाया था मगर शासन की इस लाभकारी योजना में भी उच्चाधिकारियों व आरटीआई के अधिकारियों ने मिलकर सेंधमारी कर दी जिससे योजना का लाभ मिलने की बजाए अधिक हानि हो गई है। सबसे बड़ी चूक विभागीय अधिकारियों से ही हुई है। योजना की मॉनिटरिंग करने के लिये बिठाये गये अधिकारियों ने अपेक्षित गंभीरता नहीं दिखाई और सबसे पहला घोटाला कोरबा में सामने आया। वहां ई-चालान कम राशि का जमा कराया गया और रसीद में रकम बढ़ाकर भारी और कीमती वाहनों के परमिट, फिटनेस और पंजीयन आदि कराये जाते रहे। राजस्व संग्रहण में आई कमी से कुछ खास अफसरों का माथा ठनका और गोपनीय जांच कराये जाने पर आरटीओ में कुछ खास  एजेंटों द्वारा खेले गये फर्जीवाड़े के खेल का खुलासा हुआ। विभागीय अधिकारियों से इस बारे में पूछा गया तो किसी ने कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया, और कुछ उच्चाधिकारियों ने मामले की जानकारी न होने की बात कही। छत्तीसगढ़ प्रदेश के शासकीय विभागों में घोटालों का घिनौना खेल रूकने का नाम ही नहीं ले रहा है। भले चाहे प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह कितना भी जीरो टॉलरेंस का बखान करें और इसका प्रचार प्रसार करें मगर असलियत तो आज भी पहले के जैसी ही बनी हुई है कि राज्य सरकार के शासनकाल में गबन व घोटालों का खेल बदस्तूर जारी है बेरोकटोक। 

राज्य सरकार की असफलता से केन्द्र व पार्टी दोनों ही नाराज
केन्द्र व राज्य सरकार दोनों ही भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए पिछले कई महीनों से यत्न कर रही है मगर राज्य सरकार प्रदेश में हो रहे भ्रष्टाचारों पर अंकुश लगाने में सफल नहीं रही है। अगर चुनाव पूर्व दो वर्ष और चुनाव पश्चात डेढ़ वर्ष में राज्य सरकार किसी भी विभाग में हो रहे भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में पूरी तरह नाकामयाब रही है और पार्टी के लिए भी ऐसी कोई विशेष उपलब्धि हासिल नहीं हुई है जिससे केन्द्र व पार्टी संतुष्ट हो सके। दिल्ली से सूत्रों के हवाले से जानकारी मिली है कि छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार व भ्रष्टाचारियों के ऊपर रोकथाम करने में राज्य सरकार की विफलता से केन्द्रीय मंत्रिमंडल में नाराजगी है और पार्टी के उच्च अधिकारी भी संतुष्ट नहीं है। बार बार भ्रष्टाचार, गबन, घोटालों में राज्य सरकार की मिलीभगत व सहमति या सहभागिता से भी पार्टी नाराज है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे ही विदेशी दौरे से वापस आएंगे, राज्य सरकार की बार बार असफलताओं पर प्रधानमंत्री, मंत्रिमंडल और पार्टी के उच्च अधिकारियों की बैठक में मंत्रणा की जाने की संभावना है और संभवतः उसके पश्चात राज्य में कई फेरबदल होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। देखना यह है कि प्रधानमंत्री, केंद्र सरकार व पार्टी की बैठक व मंत्रणा से क्या परिणाम निकलता है? सुखदायक परिणाम निकलेगा या नहीं? और छत्तीसगढ़ के लिए यह निर्णय कितना लाभदायक साबित होगा? फिलहाल यह सभी बातें अभी तक मात्र संभावनाओं पर निर्भर है।

अंतर्राष्ट्रीय संस्था व कैग द्वारा जारी रिपोर्ट
एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था व कैग के द्वारा सर्वेक्षण की हालिया रिपोर्टों को देखें तो काफी हद तक वास्तविकता समझ आती है कि वर्तमान में राष्ट्र को सबसे अधिक चूना शासकीय अधिकारी व विभागीय कर्मचारी ही लगा रहें हैं। रिपोर्ट में भ्रष्टाचार का सबसे मुख्य कारण उच्चाधिकारी ही होतें हैं और अधिकांश भ्रष्टाचार की शुरुआत इन्हीं से प्रारंभ होती है। रिपोर्ट में भ्रष्टाचार करने का तर्क भी दिया गया है कि उच्चाधिकारी उच्च पदों पर पदस्थ होतें हैं इसलिए इन्हें संविधान, कानून, विभागीय नियमों और गाइडलाइंस को भलीभांति जानते हैं। चूँकि यह काफी जानकार होतें हैं इसलिए पहले योजनाओं में कमियों को निकालते हैं और फिर कमियां तलाश करने के पश्चात अपने से नीचे पदस्थ विश्वस्त अधिकारियों को भ्रष्टाचार में सम्मिलित करते हैं और फिर धीरे धीरे यह चेन नीचे के पदस्थ कर्मचारियों तक पहुंचती है और फिर भ्रष्टाचार किया जाता है और तय हिस्से के अनुसार सब में यह राशि वितरित होते हुए सबसे उच्चाधिकारी तक पहुंचती है, रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि सबसे दुखद पहलू यह होता है कि इनमें राजनेताओं व मंत्रियों तक की अघोषित सहमति होती है जिसके चलते भ्रष्टाचार दिन ब दिन अपना दायरा बढ़ाता जाता है और एक समय ऐसा हो जाता है जिस समय भ्रष्टाचार विकराल महामारी का रूप धारण कर लेता है और योजना में पारित बजट का 75 फीसदी सीधे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। इसके लिए राज्य शासन व प्रशासन ही एक ऐसी कड़ी होती है जो इनको रोक सकते हैं मगर यह भी थोड़े से व्यक्तिगत लाभ के चलते चुपचाप बैठे देखते रहते हैं।