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छत्तीसगढ़ - प्रधानमंत्री सड़क योजना में घोटालों का बड़ा खेल, जीरो टॉलरेंस पर फिर से राज्य सरकार हुई फेल

छत्तीसगढ़ 24 सितंबर 2015 (जावेद अख्तर). छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत लगभग 125 घोटालों का सच बाहर आया जिसके तहत 1 से 1.5 हजार करोड़ से भी अधिक का घोटाला उजागर हो चुका है। जिसकी जांच के लिए स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) के गठन का प्रस्ताव भी तैयार किया गया था, लेकिन राज्य सरकार की शिथिलता के कारण पूरी जांच ही ठंडे बस्ते में डाल दी गई है।

पीएम सड़क योजना में व्यापक रूप में भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ था जिसके बाद राज्य सरकार ने जीरो टॉलरेंस का हौव्वा बनाया और भ्रष्टाचारियों व भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने की लंबी चौड़ी बकवास करके प्रदेशवासियों को भ्रमित कर दिया। राज्य सरकार की कार्यप्रणाली में कितनी गुणवत्ता व सच्चाई है ये तो इसी से समझी जा सकती है कि केन्द्रीय सरकार की योजनाओं में एक के बाद एक लूट खसोट और भ्रष्टाचार किया जाता रहा और राज्य सरकार गांधी जी के तीनों बंदरों की तरह बैठी रही। जबकि अधिकांश भ्रष्टाचार व घोटालों में भाजपा के ही नेता व मंत्री व उच्चाधिकारी व कार्यकर्ताओं की मिलीभगत सामने आ जाने के बावजूद भी राज्य सरकार ने न ही रोक लगाने का प्रयास किया और न ही इन भ्रष्टाचारों के विरूद्ध किसी भी प्रकार की कार्यवाही की। बल्कि राज्य सरकार से मिली छूट का ही नतीजा नान, नसबंदी और धान घोटाला हुआ, सबसे प्रमुख यह रहा कि नान घोटाले में स्वंय मुख्यमंत्री व उनकी पत्नी तक का नाम सामने आया।
पीएम सड़क योजना में घोटाला खुल जाने के बाद पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के आला अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद जांच के प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाला गया। पिछले 7-8 वर्षों के दौरान 1 से 1.5 हजार करोड़ से अधिक की सड़कों के निर्माण में हुई गड़बड़ी की जांच विभागीय स्तर पर हो चुकी है। विभागीय व उच्च प्रशासनिक सूत्रों के मुताबिक, इन 120 मामलों की विभागीय जांच रिपोर्ट के आधार पर दोषी नेताओं, सरपंचों, अधिकारियों और ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई की जानी थी, लेकिन कार्रवाई करने की बजाए बचाने का अधिक प्रयास किया जा रहा है इसी के चलते इन जांच रिपोर्टों का एक बार पुनः परीक्षण के लिए पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के तकनीकी विशेषज्ञों व अधिकारियों की टीम बनाई जा रही है और फिर जांच प्रक्रिया पूर्ण की जाएगी। मतलब एकदम स्पष्ट है कि राज्य सरकार येन केन प्रकारेण दोषियों को बचाने का भरपूर प्रयास कर रही है क्योंकि जांच प्रक्रिया एक बार पूरी हो चुकी है और रिपोर्ट सरकार के हाथ में हैं मगर दुखद पहलू है कि इस जांच के आधार पर कोई कार्रवाई नहीं करने का फैसला लिया गया और पुनः से जांच प्रक्रिया दोहराई जाएगी। जबकि जो जांच हो चुकी है अगर उसकी रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की जाएगी तो भाजपा के समर्थित कई सरपंच, सचिव, कार्यकता व अधिकारी नपेंगे।

रिपोर्ट में उच्चाधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध करार दी गई है और यहां तक कि राज्य सरकार के कई नेताओं के नाम भी शामिल होने की बात बताई गई है। संभवतः समझा जा सकता है कि इस जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है और पुनः से जांच करवाने के पीछे का उद्देश्य क्या है। पुरानी जांच रिपोर्ट से बिल्कुल ही अलग नई जांच रिपोर्ट आने की उम्मीद जताई जा सकती है क्योंकि राज्य सरकार जिनको बचाने का प्रयास कर रही है संभवतः नई रिपोर्ट में उन सभी के नाम शामिल नहीं होंगे। सूत्रों ने बताया है कि वर्ष 2005 से 2013 की अवधि में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत सड़क निर्माण के ठेकेदारों तथा ग्रामीण विकाास प्राधिकरण के अधिकारी-कर्मचारियों द्वारा षड्यंत्रपूर्वक किए गए 120 से अधिक आपराधिक कृत्यों के प्रकरणों के अन्वेषण के लिए राज्य स्तर पर एसआईटी के गठन का प्रस्ताव था। जबकि गृह विभाग ने यह प्रस्ताव तैयार किया था। संबंधित फाइल को विभाग के उच्चाधिकारियों की जानकारी में लाए बगैर सीधे गृह विभाग के प्रमुख सचिव को भेज दिया गया था क्योंकि रिपोर्ट में विभाग के कई उच्चाधिकारियों के नाम भी शामिल थे, इसीलिए इस रिपोर्ट को विभागीय अधिकारियों के सामने आए बिना ही ऊपर भेजा गया था मगर यह प्रक्रिया राज्य सरकार को रास नहीं आई। और इस प्रक्रिया पर पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने आपत्ति जताई कि, ये मामले पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग से संबंधित हैं, इसलिए एसआईटी गठन संबंधी फाइल को अनुमोदन के लिए पहले पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को भेजा जाना चाहिए था।

पंचायत विभाग की इस आपत्ति के बाद गृह विभाग कुछ भी नहीं कर सका और राज्य सरकार व विभाग की आपत्ति के मद्देनजर एसआईटी गठन के प्रस्ताव संबंधी फाइल को मजबूरन ठंडे बस्ते में डालना पड़ा। हालांकि गृह विभाग इस प्रस्ताव के द्वारा बहुत ही बड़े व व्यापक स्तर के भ्रष्टाचार पर पूरी तरह अंकुश लगाना चाहता था और रिपोर्ट के आधार पर दोषियों के विरूद्ध कार्रवाई करना चाहता था। मगर गृह विभाग का यह सार्थक प्रयास भी भ्रष्ट सरकार के सामने टिक नहीं पाया। इसके बाद गृह विभाग के मंत्री को भी बदल दिया गया। विश्वस्त आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, उच्चाधिकारियों की जानकारी में लाए बगैर एसआईटी गठन संबंधी फाइल बढ़ाने वाले गृह विभाग के अधिकारी को सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा नोटिस भेजकर उनसे जवाब-तलब भी किया गया था जिसमें गृह विभाग ने अपनी दलीलें पेश की थी मगर सामान्य प्रशासन विभाग इन दलीलों से सहमत नहीं है।

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत पिछले आठ साल की अवधि के दौरान सड़क निर्माण में ठेकेदारों व अधिकारियों के खिलाफ गड़बड़ी की शिकायतों की जांच विभागीय स्तर पर हो चुकी है। इन प्रकरणों की दोबारा जांच के लिए फिलहाल एसआईटी गठन का प्रस्ताव नहीं है। बल्कि संबंधित जांच रिपोर्टों के परीक्षण के लिए विभागीय स्तर पर तकनीकी विशेषज्ञों व अधिकारियों की टीम बनाई जा रही है। इसके बाद दोषी ठेकेदारों व अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होगी। - एमके राउत, अपर मुख्य सचिव, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग

मगर जब उनसे पूछा गया कि पहले जो जांच रिपोर्ट बनाई गई थी, क्या उसमें दर्ज बिन्दुओं व प्रमाणों को नई रिपोर्ट में मान्य किया जाएगा या फिर पूरी जांच ही नये सिरे से होगी। तो उनका कहना है कि पुरानी रिपोर्ट में दर्ज किसी भी प्रमाण या बिन्दु को नई रिपोर्ट में जगह नहीं दी जाएगी बल्कि वर्तमान स्थिति में जो वास्तविकता व साक्ष्य मिलेंगे उनके आधार पर ही रिपोर्ट बनाई जाएगी। यानि कि कुल मिलाकर सार यही निकाला जा सकता है कि लीपापोती की पूरी तैयारी कर ली गई है और कई दोषियों के नाम भी संभवतः गायब रहेंगे।

प्रदेश के मुख्यमंत्री के जीरो टॉलरेंस की धज्जियाँ उनकी सरकार के ही मंत्री, संत्री व अधिकारी उड़ा रहे हैं। खुले रूप में जीरो टॉलरेंस का मजाक बनाया जा रहा है ऐसे में प्रदेश की जनता मुख्यमंत्री के जीरो टॉलरेंस के बखान का क्या अर्थ निकाले? मुख्यमंत्री को आगे अपने भाषण में इस पर भी सफाई देनी चाहिए कि जीरो टॉलरेंस राज्य सरकार व उच्चाधिकारियों को छोड़कर बाकी अन्य पर लागू होती है तो शायद प्रदेश की जनता उनके भाषण पर जोरदार तालियों से द्विअर्थी बातों का स्वागत करेगी और नारे लगायगी। कि अब समझ आया कि वास्तव में जीरो टॉलरेंस का खेल क्या है और किसके लिए है। क्योंकि किसी के लिए जीरो टॉलरेंस बचाव का मार्ग है तो किसी के लिए हथकड़ी। हथकड़ी वाले श्रेणी की शुरुआत अधिकारियों से प्रारंभ होकर नीचे की ओर बढ़ती है जो कि दैनिक वेतनभोगी या दैनिक मजदूरों पर ही लागू होती है। उच्च स्तर के पहले दो पायदान जीरो टॉलरेंस की पकड़ से बाहर है? अगर ऐसा ही है, घोषणा तो की ही जानी चाहिए ताकि प्रदेश की गरीब व आदिवासी जनता उसी के अनुसार ही अपनी आशाएं पाले।