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छत्तीसगढ़ - बिजली के बिलों में फर्जीवाड़ा हुआ उजागर, घर बैठे फर्जी बिजली बिल बना रहे ठेकेदार

छत्तीसगढ़ 23 सितम्‍बर 2015 (जावेद अख्तर). छत्तीसगढ़ प्रदेश में अब बिजली के बिलों में फर्जीवाड़ा सामने आया है। बिजली के बिलों में रीडिंग के साथ छेड़छाड़ कर फर्जी भुगतान करा लिया जा रहा है जिससे कि बिजली उपभोक्ताओं को अभी तक अच्छा खासा चूना लगाया जा चुका है, जिसकी शिकायतें भी की गई बावजूद इसके विभाग के अधिकारियों ने इस तरह के मामलों पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझा।

दरअसल बिजली के बिल की रीडिंग घर बैठे की जा रही है और ठेकेदार अपने मनगढंत बिल का हिसाब लगाकर बिल तैयार करवा रहे हैं। ऐसा करने से ठेकेदार को काफी मोटा मुनाफा तो हो रहा है साथ ही ज्यादा टैरिफ के जरिए करोड़ों रुपए का बड़ा हिस्सा विभाग के खाते में जा रहा है। खम्हारडीह, कचना, सेजबहार, अभनपुर, हीरापुर, धरसींवा, शंकर नगर, रायपुरा, सांकरा आदि इलाकों के कई घरों की जांच पड़ताल कर ठेकेदारों से भी इस मामले पर बातचीत की गई। इस दौरान वहां के इलाकों की रीडिंग करने वाले ठेकेदार घर में बिजली का बिल तैयार करते पकड़े गए। यही हाल लगभग पूरे प्रदेश का है। 1200 से 1500 मकानों में एक ठेकेदार की नियुक्ति होती है, जो आधे से ज्यादा में फर्जी या मनगढंत तरीके से रीडिंग फीड करता है। जांच के दौरान यह बात सामने आई कि 50 फीसदी से ज्यादा घरों में 6-7 महीने में एकाध बार ही रीडिंग होती है और उसी के अनुमान के आधार पर कई महीनों का बिजली बिल दिया जाता रहता है फिर जब किसी समय असल रीडिंग होती है तो यूनिट और टैरिफ बढ़ जाता है। इस कारण बिल 20 से 30 गुना बढ़ा हुआ आता है। क्योंकि बीते 5-6 महीने में बिजली बिल का भुगतान असल रीडिंग से बढ़ा हुआ दिखाई देता है।

इससे बिजली उपभोक्ता के लिए परेशानी उत्पन्न हो जाती है और उपयोग से कहीं अधिक टैरिफ के अनुसार अधिक रूपए भरना पड़ रहा है। बीते 6 महीने में प्रदेश के लगभग हरेक जिला, तहसील, ब्लाक व गांवों से इस प्रकार की कई शिकायतें सबके सामने आ चुकी है। हाल ही में कोरबा जिले में रहने वाली बीपीएल कार्ड धारक महिला को 60 हजार रूपए का बिजली बिल भेज दिया गया था जिस पर उस महिला ने मुख्यमंत्री के सामने उपस्थित होकर पूरे प्रकरण की जानकारी दी थी। उसके बाद गरियाबंद, दुर्ग, रायपुर, बस्तर में भी ऐसी शिकायतें आई थी जिसमें किसी का बिल 1 लाख तो किसी का बिल 4 लाख तक का भेज दिया गया था जबकि इनके बिजली कनेक्शन सिर्फ डबल फेज़ ही थे।
     

फर्जी रीडिंग का ऐसे हुआ खुलासा
रीडिंग के मामले की इंवेस्टिगेशन गुप्त रूप से की गई, हम उनका नाम उजागर नहीं कर रहे, क्योंकि यह हाल प्रदेश के हरेक क्षेत्रों में यही स्थिति बनी हुई है। इसलिए इसकी शिकायत उपभोक्ता को करनी होगी कि प्रत्येक माह रीडिंग ली गई है कि नहीं? अगर नहीं तो किस आधार पर हर महीने का बिल बनाया गया है? जिसके बाद विभाग के अधिकारी कार्रवाई करेंगे। ठेकेदार एकमुश्त औसत बिलिंग के नाम से रीडिंग और यूनिट की खपत जोड़ता जाता है। 6-7 माह या फिर कई बार तो 10-11 महीने में जब असल रीडिंग होती है तब उपभोक्ता चौंक जाता है।

नए पैटर्न के अनुसार, बिजली के बिल की रीडिंग एक छोटी सी मशीन से होती है। इसमें पिछली रीडिंग के बाद नई रीडिंग फीड करते ही बिल कम्पयूटरीकृत साफ्टवेयर के कारण स्वतः से ही तैयार हो जाता है। इसके बाद भी रीडिंग लेने में लापरवाही होती है और बिल बढ़ जाता है। देखने में आया कि ऐसा उन उपभोक्ता के बिलों में किया गया जो अधिकांशतः घर पर नहीं रहते हैं। यदि उपभोक्ता घर पर नहीं है तो मीटर रीडर औसत खपत का अंदाजा लगा कर अपने मन से ही रीडिंग फीड कर देता और बिल छोड़ कर चलता बनता है। खासतौर पर यह लापरवाही अधिक देखी गई, और जिसका खामियाजा उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ रहा है।
                 
पुराने तरीके में देखा गया कि बिजली के कार्यालयों में एक लॉग बुक होती है जिसमें प्रति माह रीडिंग नोट करके विभाग को भेजा जाता था। और फिर बिजली का बिल तैयार करके बड़ी पर्ची में इसे बांटा जाता था। मगर वर्तमान में सबसे अधिक गड़बड़ी इसी में होती है। क्योंकि इसकी रीडिंग सबसे ज्यादा फर्जी तरीके से भरी जाती है। बिजली विभाग के अधिकांश आफिसों में इसी लॉग बुक को फर्जी तरीके से भरते हुए कई बार पकड़ा भी जा चुका है, लेकिन ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती बल्कि सिर्फ समझाइश देकर छोड़ दिया जाता है।
 
 टैरिफ और मनमाने बिल का खेल समझिए
- 0-40 यूनिट के लिए 2 रुपए प्रति यूनिट लगता है, जबकि 1 रुपए इसमें ऊर्जा भार लिया जाता है।
- 41-200 यूनिट के लिए 2.10 रुपए और 1 रुपए ऊर्जाभार प्रतिघंटे लिया जाता है।
- 201-600 यूनिट के लिए 2.80 रुपए का चार्ज लगता है, जिसमें ऊर्जा का भार 1.60 रुपए प्रति घंटे जुड़ता है।
- 601 से ज्यादा यूनिट वाले उपभोक्ताओं को 4.30 रुपए प्रति यूनिट और 2.20 रुपए ऊर्जा भार लगता है।
   
टैरिफ की वजह से ऐसे बढ़ता है बिल
200 यूनिट तक इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ता का बिल अगर बिना मीटर रीडिंग के जारी हुआ तो उसे औसतन 450 से 500 रुपए का बिल आएगा। छह-सात महीने में रीडिंग हुई, तो बिल में दो से तीन हजार यूनिट बढ़ेगा। अब जब 600 यूनिट के हिसाब से टैरिफ जुड़ेगा तो जाहिर है बिल 10 से 15 हजार रुपए तक बढ़ जाएगा। क्योंकि विभाग के कर्मचारी यह नहीं देखते कि कितने महीनों से असल रीडिंग नहीं हुई है बस सीधे सीधे रीडिंग के अंतर को घटाते हैं और जो बकाया रीडिंग होती है उस पर ही टैरिफ प्लान लागू करते हुए बिल थमा देतें हैं। जबकि बकाया रीडिंग की जानकारी के लिए, पिछले 4-6 बिलों में दर्ज मीटर रीडिंग को देखना चाहिए कि कि उनमें रीडिंग का क्या क्रम है और एकाएक इतना अधिक अंतर क्यों आ गया। मगर बिजली विभाग के अधिकारियों को इससे क्या फर्क पड़ता है कि उपभोक्ताओं के साथ कितना बड़ा खेल खेला जा रहा है। उन्हें उपभोक्ताओं की परेशानी से क्या लेना देना क्योंकि सीएसईबी हर माह वेतन तो दे ही रही है कुर्सी तोड़ने और एयरकंडीशन रूम में बैठने के लिए। उपभोक्ता जाए भाड़ में और उनकी परेशानियां हैं वो ही जाने।

बिलिंग में जो भी हेरफेर की गई है और लगातार की जा रही है इसके लिए ठेकेदार ही नहीं बल्कि अधिकारी भी जिम्मेदार है। क्योंकि सोचने वाली बात यह है कि बीते एक वर्ष में सिर्फ रायपुर जिले से 19 हजार से भी अधिक ऐसी हेरफेर व गड़बड़ी की शिकायतें उपभोक्ताओं द्वारा दर्ज कराई गई लेकिन हैरानी की बात है कि इस एक वर्ष के दौरान विभाग व अधिकारियों ने इन शिकायतों को गंभीरता से लिया ही नहीं और न ही संज्ञान में लेने की आवश्यकता ही की गई जिसके कारण हेरफेर करने वालों ठेकेदारों के हौसला बढ़ता ही चला गया। इससे संभावना है कि इस प्रकार के हेरफेर में विभाग व अधिकारियों की मिलीभगत है इसीलिए तो इतनी अधिक शिकायतों के बावजूद एक भी ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई। अगर सहभागिता नहीं होती तो संभवतः 19 हजार शिकायतों के बाद कुछ तो किया ही गया होता और शायद उपभोक्ताओं को आज जिन कष्टों को झेलना पड़ा है वह नहीं झेलना पड़ता और उपभोक्ताओं के जेबों में डाका डालने वाले सुधर चुके होते। मगर अफसोस न ही शासन, न ही विभाग व अधिकारियों को उपभोक्ताओं से कोई सरोकार है और न ही अपनी जिम्मेदारी का अहसास है। कमरतोड़ महंगाई में बिजली विभाग वालों ने भी आम जनता को लूटने में पीछे कैसे रह सकतें हैं। सुविधाओं के नाम पर, फीडर व मेन लाइन में फाल्ट का बहाना बनाकर प्रत्येक दिन दो से तीन घंटे की बिजली कटौती करतें हैं, पूरे बारह महीने 365 दिन मरम्मत ही करते रहतें हैं जबकि बजट इतना भारी दिया जाता है कि अगर 50 फीसदी काम व बजट ईमानदारी से खर्च कर दें तो शायद 4-6 महीनों तक न ही मरम्मत की आवश्यकता पड़ेगी और न ही मेन लाइन में कोई फाल्ट ही आएगा।
       
विभाग द्वारा तय दंड
- रीडिंग से छेड़छाड़ या कम-ज्यादा करने पर 400 रुपए का जुर्माना या ठेका रद्द
- रीडिंग लेने में गड़बड़ी करे तो उसे 10 रुपए प्रति उपभोक्ता का जुर्माना
- समय पर रीडिंग नहीं लेने पर 100 रुपए
- दूसरी बार रीडिंग नहीं लेने पर 25 रुपए का अतिरिक्त जुर्माना
  
सुदूर आंचलिक क्षेत्रों में सबसे अधिक हेरफेर
रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर में ठेकेदारों की तरफ से इस प्रकार की ढेरों गड़बड़ियां सामने आईं हैं लेकिन यह आंकड़ा आंचलिक क्षेत्रों में सबसे अधिक है। दरअसल ग्रामीण में शिक्षा का अभाव व बिजली से संबंधित सही से जानकारियां न होने के कारण इन क्षेत्रों में आमतौर पर कोई शिकायत नहीं करता है जिसका लाभ ठेकेदार व अधिकारी मिलकर उठा रहें हैं। विभागीय सूत्रों द्वारा जानकारी के मुताबिक आंचलिक व नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तो 70-75 फीसदी से ज्यादा घरों की मनगढंत बिलिंग होती है।विशेषज्ञों का कहना है कि विभागीय ठेके के साथ प्राइवेट काम इसलिए कामचोरी अधिक व ईमानदारी कम होती जा रही है।
  
विभाग ने भी हेरफेर माना, लेकिन उपभोक्ताओं को भी जिम्मेदार ठहराया
छत्तीसगढ़ बिजली विभाग में ऑपरेटिंग एंड मेंटनेंस के चीफ इंजीनियर ने साफ कहा कि मीटर रीडिंग में गलती तो होती है, जिसके लिए ठेकेदार पूरी तरीके से जिम्मेदार है। लेकिन 90 फीसदी मामलों में उपभोक्ता उसे पैसे देकर बिल कम करने को कहता है और बाद में जब इसी बिल का पूरा हिसाब होता है तो उपभोक्ता को यह ज्यादा लगता है। नक्सल इलाकों की बात करें तो वहां खपत ज्यादा है पर बिल की रिकवरी पूरी नहीं हो पाती। यह भी इसी लापरवाही का नतीजा है। जबकि रायपुर से ही 19 हजार शिकायतों को गंभीरता से क्यों नहीं लिया गया और एक भी ठेकेदार पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई, इस पर चीफ इंजीनियर सहित विभाग के अधिकारी निरूत्तर ही रहे। सभी अधिकारियों ने विभाग की तय सीमा व अधिकार का हवाला देते हुए बचने का प्रयास करते रहे। किसी ने भी इस मामले पर गंभीरता नहीं दिखाई है जो कि चिंता का विषय है।
  
मीटर किसी का लाइन किसी को
बिजली विभाग की लापरवाही का एक नमूना रायपुर शहर में सामने आया, रायपुर में एक लेबर क्वार्टर के नाम पर बिजली का कनेक्शन लिया गया मगर उस बिजली कनेक्शन से मोहन जुटमिल का बंगला रोशन हो रहा है। बिजली विभाग की ओर से यहां के क्वार्टर में रहने वाले के नाम पर बिजली कनेक्शन दिया गया है, लेकिन उक्त कनेक्शन का मीटर बंगले में लगा दिया गया है। संबंधित कनेक्शनधारी ने यह आरोप लगाते हुए शिकायत भी की है कि उसके मीटर में बंगले का कनेक्शन भी जोड़ दिया गया है जिसके कारण उसका बिजली बिल काफी अधिक आ रहा है। बिजली विभाग ने जूटमिल लेबर कॉलोनी में रहने वाले विरेंद्र सिंह पिता बच्चा सिंह के नाम पर मीटर नंबर 1004690416 जारी किया। इस मीटर के जरिए उक्त कनेक्शनधारी को कनेक्शन तो दिया गया लेकिन मीटर को बंगले में लगा दिया गया। हालांकि मीटर लगने के बाद भी उक्त कर्मचारी अपना बिल जमा करता रहा। अब विरेंद्र सिंह ने शिकायत करते हुए यह आरोप लगाया है कि मीटर में बंगले के कनेक्शन का भी लोड डाल दिया गया है जिसके कारण पिछले कुछ माह से इस कनेक्शन में बिजली बिल कुछ ज्यादा ही आ रहा है। जबकि स्टॉफ कॉलोनी निवासी विरेंद्र सिंह ने इस बात की शिकायत पूर्व में सहायक कार्यपालन अभियंता सीएसईबी से की थी। इसके बाद भी कुछ कार्रवाई नहीं हुई तो पिछले दिनों इसकी शिकायत कलक्टर से की गई है। कलक्टर को शिकायत करते हुए मीटर स्थानांतरण कराने की मांग की गई है। ताकि इस परेशानी से छुटकारा मिल सके। मगर अभी तक विभाग द्वारा शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है जिससे उक्त कनेक्शनधारी को प्रत्येक माह अच्छा खासा बिजली का बिल भरना पड़ रहा है।

* बिजली विभाग में मीटर की रीडिंग और बिल तैयार करने वाले ठेकेदार अपने आधे कर्मचारियों से काम चला रहे हैं। ज्यादातर ठेकेदार छोटा-मोटा बिजली का काम करने वाले कर्मचारी को रखता है, जिससे उन्हें उपभोक्ता की शिकायतों में भी काम करके पैसा कमाने का मौका मिलता है। इसलिए ईमानदारी से काम करने के बजाए घर बैठकर रीडिंग ली जाती है। - चीफ इंजीनियर रायपुर

* उपभोक्ता अलर्ट रहें - सीएसपीडीसीएल सिटी सर्कल के अधीक्षण अभियंता ने कहा कि आमतौर पर ऐसी शिकायतें आती हैं। इसमें कार्रवाई भी होती है। लेकिन उपभोक्ता को अलर्ट होना होगा। उन्हें अगर ज्यादा बिल मिले, तो वो स्थानीय बिजली कार्यालय में शिकायत करें, वहां से उचित कार्रवाई होगी। उन्होंने यह भी कहा कि ठेकेदारों पर जुर्माना लिया जाता है, लेकिन कार्रवाई जांच के बाद होती है। - अधीक्षण अभियंता पीके खरे

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