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छत्तीसगढ़ - चिटफंड कंपनियों ने फैलाया माया जाल, संचालक हुए मालामाल आम आदमी हुआ कंगाल

छत्तीसगढ़ 16 सितम्‍बर 2015 (जावेद अख्तर). छत्तीसगढ़ की भोली-भाली जनता को आकर्षक लाभ का झांसा देकर एक दर्जन से ज्यादा चिटफंड कंपनियों ने उनकी गाढी कमाई के दो हजार करोड़ रुपये दबा लिये हैं। इनमें से कई कंपनियां तो ऐसी हैं, जो यहां 10-12 साल से निवेश कराने में लगी हुई थी। करीब पांच लाख लोग अब अपनी जमापूंजी वापसी के लिये परेशान हैं। पुलिस ने कुछ कंपनियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई तो शुरु की है लेकिन यहां के लोगों को राहत मिलती नहीं दिख रही है। 
चिटफंड कंपनियों ने छत्तीसगढ़ में वर्ष 2003 से सबसे अधिक सक्रिय हुए। एक सरकारी संस्था के सर्वेक्षण के अनुसार, देश भर में जितनी भी चिटफंड कंपनियां हैं उनका बेसिक एक समान ही होता है कि रकम को कम समय में दुगुना या तिगुना करने का प्लान। इस पूरी कार्ययोजना को पहले से ही तैयार कर लिया जाता है और बहुत ही बारीकी से पूरी योजना को अंजाम दिया जाता है। प्रथम प्लान को मूर्त रूप देने के लिए चिटफंड कंपनियों के संचालक सबसे पहले किसी लोकल व्यक्ति मुख्यतः नवजवान का चयन करते हैं जो काफी समय से बेरोजगार हो मगर उसकी छवि क्षेत्र में अच्छी हो क्योंकि अमूमन 85 फीसदी भारतीय अपने क्षेत्र के निवासियों के चलते ही चिटफंड कंपनियों में पहली बार रकम निवेश करते हैं। कुछ स्थानों पर परिवार के किसी अपने के चलते रकम निवेश करते हैं। योजना के अनुरूप ही, कंपनी का कार्यालय बेहद सुसज्जित व आलीशान खोलते हैं और प्रारंभ में चिटफंड कंपनियों के कर्मचारियों की जीवनशैली को उच्च स्तरीय बनाते हैं ताकि लोग बाग इनकी शानो शौकत व जीवन यापन उच्च स्तर का रहे जिसे देखकर अधिक से अधिक लोग प्रभावित हों। चूंकि ऐसी ही चमक दमक वाली जिंदगी व जीवनशैली हरेक आम आदमी चाहता है परन्तु कमरतोड़ महंगाई के चलते मध्यम वर्गीय लोगों के लिए उच्च स्तरीय जीवनशैली सपनों जैसी होती है। 
 
मध्यम वर्गीय व उससे नीचे का तबका इन लालसाओं के चलते ही चिटफंड कंपनियों का सबसे आसान शिकार बन जाता है। बस जरूरत होती है उनके न पूरे होने वाले सपनों को हकीकत में पूरा करने का विश्वास दिलाना। अब आगे के लिए योजना के अनुरूप ही रकम निवेश करने वालों को कंपनी के नियमों के मुताबिक रकम वापस करना शुरू किया जाता है। रकम कम समय में दुगुना होकर मिलने से निवेशकों का विश्वास दृढ़ होता है और अपने जान पहचान के लोगों को भी अवगत करातें है या यूं समझ लें कि एक हिसाब से ऐसे निवेशक ही कंपनियों के असली प्रचारक होतें हैं। दो से चार, चार से सोलह और सोलह से छः सौ इसी तेज़ क्रम में निवेशकों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ने लगती है। जिससे चिटफंड कंपनी का कारोबार भी तेजी से फैलने लगता है। सौ दो सौ निवेशकों को जब रकम बढ़ कर मिलती है तब तो ऐसे निवेशक मानों भक्त हो जातें हैं कंपनी हो, ऐसे अंधभक्त बन जाते हैं जिन्हें कंपनी के अलावा अन्य कोई भी नाम व काम याद ही नहीं रहता है। चिटफंड कंपनियों के एक सर्वेक्षण पर नज़र डालें तो 90 फीसदी चिटफंड कंपनियों ने इन्हीं योजनाओं पर चलते हुए काफी नामी कंपनियों में शुमार होने लगती है। क्षेत्र के मध्यम वर्गीय व इसके नीचे के तबके के निवासियों के लिए यह कंपनियां किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं होतीं हैं मगर जब चिटफंड कंपनियों के पास रकम अरबों में पहुंच जाती है तभी जितने भी संचालक व प्रारंभकर्ता होतें हैं सभी कंपनियों में जमा रकम को बांटकर चंपत हो जातें हैं। कार्यालय में जब दस पन्द्रह दिनों तक लगातार ताला लटका रहता है तब इन अंधभक्तों की आंखें खुलती हैं और फिर सभी लुटे पिटे निवेशकों की फौज पहुंचती है स्थानीय थाने या कोतवाली। यह क्रम बीते 12-13 वर्षों से लगातार जारी है, एक के बाद एक करके पचासों चिटफंड कंपनियों ने अपना मायावी जाल बिछाया और आम जनता के के रूपए लेकर रफूचक्कर हो गई है।
छत्तीसगढ़ में आलीशान कॉम्पलेक्स को किराये पर लेकर भारी तामझाम के साथ दफ्तर खोलने वाली एक दर्जन फाइनेंस और बैंकिंग कंपनियां कारोबार समेटकर भाग चुकी हैं जिससे लगभग 2 हजार करोड़ रुपये से भी अधिक रकम चिटफंड कंपनियां दबा चुकी है। छग में साई प्रसाद, एचबीएन, पीएसीएल नाम तीन कंपनियों ने ही एक हजार करोड़ से ज्यादा रुपये वसूल किये हैं। इनमें से सबसे ज्यादा पुरानी कंपनी पीएसीएल ने दो साल से भुगतान करना बंद कर दिया है। ऐसे ही एमसीएक्स ने भी जबरदस्त झटका लगाया है और सबसे खास बात ये रही कि राजेश शर्मा (डाल्फिन स्कूल के संचालक) ने सबको चूना लगा कर नौ दो ग्यारह ऐसा हुआ कि आज तक पता नहीं लगा कि उसे जमीन निगल गई या आसमान, तो एमसीएक्स के फर्जीवाड़े में नितिन चोपड़ा छग पुलिस के हत्थे चढ़ चुका है जिससे पता लगा कि नितिन चोपड़ा ने राजेश शर्मा को भी चूना लगाया था, इसके अलावा एचबीएन और साई प्रसाद अभी पुलिस कार्रवाई के दायरे में हैं। इन सभी कंपनियों की कार्यशैली एक ही रही है। कम समय में रकम दोगुना करने, जमा रकम पर ज्यादा ब्याज देने जैसे वायदे कर उन्होंने लोगों से मासिक, तिमाही और सालाना योजनाओं में रकम निवेश कराये। भरोसा जीतने के लिये कुछ साल तक उन्होंने निवेशकों को उनकी जमापूंजी बढ़त के साथ लौटाई। बाद में किसी न किसी बहाने भुगतान विलंबित किया गया।

 इन कंपनियों के डायरेक्टर हुये गिरफ्तार
रायपुर के अलावा अन्य शहरों में जिन बड़ी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई हो रही है, उनमें आन लाइन स्पीक एशिया कंपनी, ग्रीन रे इंटरनेशनल, माइक्रो फायनेंस, एचबीएन और साई प्रसाद कंपनी प्रमुख हैं। इनमें से स्पीक एशिया के कर्ताधर्ताओं की गिरफ्तारी को एक साल हो चुके हैं। ग्रीन रे इंटरनेशनल के भी कुछ लोग गिरफ्त में आये हैं। उन्हें जमानत भी मिल चुकी है। माइक्रो फायनेंस के सीजी चीफ को गिरफ्तार कर जमानत का लाभ दिया जा चुका है पर डायरेक्टर अभी ओड़िशा के जेल में बंद है। छग पुलिस उसे गिरफ्तार नहीं कर पाई है। एचबीएन के नौ में से एक डायरेक्टर अमनदीप सिंह शरण ही गिरफ्त में आया है। साई प्रसाद कंपनी की एक प्रमुख वंदना भापकर को बालोद पुलिस ने पुणे में दबोचा। पीएसीएल के खिलाफ पुलिस मेें शिकायत छह महीने से दबी हुई है। इसी कंपनी द्वारा सबसे ज्यादा सात सौ करोड़ से ज्यादा वसूले जाने की चर्चा है। मगर साथ ही यह चर्चा भी गरम है कि इस कंपनी के संचालक का संबंध राजनीति क्षेत्र के कई नामी लोगों से हैं इसीलिए पुलिस कार्रवाई करने से हिचक रही है। कुछ लोगों का कहना है कि पीएसीएल की जांच की गई तो राजधानी के कुछ नामी लोगों के नाम भी सामने आयेंगे जिन पर कार्रवाई कर पाना वर्तमान सरकार के शासनकाल के दौरान नामुमकिन है। बहरहाल ये तो एक नंगा सच है कि शार्ट कट से रकम को बढ़ाने का कोई तरीका नहीं होता है। मगर इतने अधिक चिटफंड कंपनियों के फर्जीवाड़ों का सच सबके सामने है बावजूद इसके आम आदमी जाने क्यूँ इनके मायावी जाल में फंस रहा है। सबको पता है कि ऐसे रास्तों पर चलकर कामयाबी हासिल नहीं की जा सकती है मगर आम जनता फिर भी इनके झांसे में आकर अपनी मेहनत की कमाई को लुटा रही है। आम आदमी को लुटने के बाद ही क्यों समझ आता है कि चिटफंड कंपनी में निवेश करना गलत था। कंपनी फरार हो जाने के बाद हर कोई शासन प्रशासन को जिम्मेवार ठहराने लगता है, तो सोचिए क्या यह पूरी तरह न्यायिक है? क्या यह सिर्फ सरकार व पुलिस की ही जिम्मेदारी है आम आदमी की नहीं? समाचारों द्वारा सूचनाओं द्वारा समय समय पर लेख प्रकाशित किया जाता रहा है कि चिटफंड कंपनियों में निवेश करना गलत है फिर भी लोग जाकर फंस रहे हैं। क्या यह आपकी जिम्मेदारी नहीं है कि चिटफंड कंपनियों में निवेश न करें? अगर आप निवेश करना ही बंद कर देंगे तो चिटफंड कंपनियां अपने आप से ही गायब हो जाएगी।

मगर चिटफंड कंपनियों पर लगाम लगाने के लिए शासन प्रशासन को भी गंभीर होना होगा, अपनी जिम्मेदारियों को ईमानदारी से निभाने की जरूरत है। चिटफंड कंपनियों के धोखाधड़ी में कहीं न कहीं शासन प्रशासन भी जिम्मेदार है भले चाहे 1 प्रतिशत ही सही मगर है इसलिए शासन प्रशासन को भी ध्यान देना चाहिए कि चिटफंड कंपनियां अपना पैर न पसारने पाए। हरेक आम आदमी की भी यह जिम्मेदारी है कि वह ऐसे लुभावने ऑफर्स में न फंसे और रकम को कम समय में दुगुना करने वाली कंपनियों से भी दूर रहे वो कितने ही लोगों को रकम दोगुना करके दे रही हो मगर असलियत यही है कि वह आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों फरार हो ही जाएगी। इसलिए ऐसे किसी भी प्रकार के प्रलोभन में फंसकर अपने रूपए गंवाने से बेहतर है कि जो भी रकम हो वह हमारे पास सुरक्षित ही रहे, तो ही ज्यादा बेहतर है।