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छत्तीसगढ़ - जांच चल रही कछुवे की चाल, झीरम हमले को हो गये 2 साल

छत्तीसगढ़ 1 सितम्‍बर 2015 ( जावेद अख्तर). न्यायिक जांच आयोग का कार्यकाल फिर 6 माह बढ़ा दिया गया है। बस्तर जिले की झीरम घाटी में दो साल पहले हुए नक्सली हमले की जांच के लिए गठित विशेष न्यायिक जांच आयोग का कार्यकाल फिर से छह माह बढ़ गया है। आयोग का कार्यकाल 27 अगस्त को समाप्त हो गया था। इसके पहले भी आयोग के कार्यकाल में पिछले 28 फरवरी से छह माह की वृद्धि की गई थी। जांच आयोग के समक्ष अभी छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से प्रस्तुत साक्षियों का परीक्षण व प्रतिपरीक्षण किया जाना शेष है। परीक्षण व प्रतिपरीक्षण के बाद ही रिपोर्ट तैयार की जाएगी। न्यायिक जांच आयोग ने इसमें अभी और समय लगने की संभावना व्यक्त की है। 
 इन परिस्थितियों को देखते हुए झीरम घाटी नक्सली हमले की जांच के लिए गठित विशेष न्यायिक जांच आयोग ने राज्य शासन को पत्र भेजकर कार्यकाल में वृद्धि करने का आग्रह किया था। सामान्य प्रशासन विभाग ने आयोग के आग्रह पर उसका कार्यकाल छह माह बढ़ाने के संबंध में आदेश जारी कर दिया है। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने बस्तर जिले के थाना दरभा के अंतर्गत झीरम घाटी में 25 मई 2013 को हुई नक्सली घटना के संबंध में जांच के लिए बिलासपुर हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में गठित एकल सदस्यीय विशेष न्यायिक जांच आयोग का गठन किया है। ज्ञात हो कि 25 मई 2013 को झीरम घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के लिए जा रहे कांग्रेस नेताओं के काफिले पर नक्सलियों ने हमला कर दिया था, जिसमें कांग्रेस के 29 नेताओं समेत अन्य लोग मारे गए थे। इनमें सलवा जुडुम से जुड़े पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, प्रदेश कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष नंदकुमार पटेल प्रमुख रूप से शामिल थे। राज्य सरकार ने विशेष न्यायिक जांच आयोग से तीन माह के भीतर रिपोर्ट देने कहा था। इसके बाद आयोग का कार्यकाल दो बार बढ़ाया जा चुका है।
झीरम घाटी हमले की जांच के लिए गठित विशेष न्यायिक जांच आयोग का कार्यकाल छह माह बढ़ाया गया है।' - विकास शील, सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग

रोजनामचा में दर्ज ही नहीं पुलिस कब पहुंची
छत्तीसगढ़ में वर्ष 2013 में हुए नक्सली हमले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। इस हमले की जांच दो वर्ष बाद भी कछुए की मंथर गति से चल रही है। इसी जांच पड़ताल में भी झीरम नक्सल कांड मामले में की न्यायिक जांच में पुलिस की रोड ओपनिंग पार्टी की कार्रवाई व घटना के बाद पुलिस की संयुक्त पार्टी के घटनास्थल पहुंचने के समय को लेकर सस्पेंस गहरा गया है। शुक्रवार व शनिवार दो दिन यहां कमिश्नर कार्यालय भवन स्थित विशेष न्यायिक जांच आयोग के समक्ष वरिष्ठ पुलिस अधिकारी दीपांशु काबरा के बयान के प्रतिपरीक्षण में कई विषयों पर कांग्रेस की ओर से वकीलों ने घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इनमें से दो विषयों रोड ओपनिंग पार्टी के द्वारा घटना के दिन सुरक्षा को लेकर की कार्रवाई और घटन के बाद पुलिस बल के घटनास्थल पहुंचने के समय को लेकर कागजी कार्रवाई में स्थानीय पुलिस की लापरवाही ने पुलिस के उच्च अधिकारियों को भी उलझा दिया। पहला मामला रोड ओपनिंग पार्टी की कार्रवाई का है।

पुलिस की ओर से इस मामले में न्यायिक जांच आयोग के समक्ष दो बातें कही गई हैं। बयान में कहा गया था कि 28 जवानों की रोड ओपनिंग पार्टी घटना के दिन 25 मई 2013 को दरभा थाना से सुबह निकली थी और शाम को सवा सात बजे वापस थाना लौटी थी। बाद में प्रतिपरीक्षण में यह बात सामने लाई गई कि रोड ओपनिंग पार्टी सुबह निकली थी लेकिन शाम तक नहीं लौटी थी बल्कि दूसरे दिन सुबह सवा सात बजे थाना वापस पहुंची थी। दरभा थाना जहां से पुलिस के अधिकारियों के नेतृत्व में पुलिस व सीआरपीएफ के जवानों का संयुक्त बल घटनास्थल झीरम घाटी के लिए रवाना होकर शाम साढ़े छह बजे पहुंचा था उसकी इंट्री रोजनामचा में दर्ज है या नहीं इस बात को लेकर प्रतिपरीक्षण में काफी तकरार हुई थी। कांग्रेस का दावा है कि रोजनामचा की जो प्रति आयोग को भेजी गई है उसमें इस बात का कोई उल्लेख नहीं है कि पुलिस पार्टी किस समय घटनास्थल पहुंची थी। इधर कांग्रेस ने एनआईए की चार्जशीट के हवाले से दावा किया है कि घटना को अंजाम देनें में करीब डेढ़ सौ नक्सली शामिल थे। इनका मुख्य उद्देश्य कांग्रेस नेता स्वर्गीय महेन्द्र कर्मा की हत्या करना था।