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रायपुर - 12 सौ करोड़ खर्च के बाद भी हालत फिसड्डी, 5 सौ करोड़ में कैसे बनाएंगे स्मार्ट सिटी

रायपुर 10 अगस्‍त 2015(जावेद अख्तर). रायपुर नगर निगम महज़ 4 सालों में ही 12.65 सौ करोड़ रूपए की भारी भरकम राशि खर्च कर चुका है और शहर की स्थिति पहले के मुकाबले अब अधिक बदतर हो गई है, यानि कि साढ़े बारह सौ करोड़ खर्च किया गया और विकास के नाम पर सिर्फ गढ्ढामय सड़कें, बेतरतीब यातायात, ट्रैफिक जाम, साफ़ सफाई व्यवस्था नगण्य, बिजली की हालत खस्ता। और अब राज्य सरकार सिर्फ पांच सौ करोड़ रुपये में नगर को स्मार्ट सिटी में बदलने की बात कह रही  है।

हवाई किले पर सवार राज्य की सरकार
ठीक है कि आपकी नजरिए में आम जनता अहमक ही सही मगर बेवकूफ तो नहीं है कि सूर्य को तारा और तारे को चांद बताईये और आम जनता उसको भी सच मान ले। ये तो हवा हवाई वाली ही बातें मानी जा सकती हैं। हवा हवाई के किले बनाने में और इतिहास रचने में राज्य सरकार का कोई तोड़ ही नहीं है सो एक बार फिर से हवा हवाई के वाहनों पर राज्य सरकार हो चुकी है सवार, यह यान किस गढ्ढे में उतरेगा यह कह पाना अभी संभव नहीं है। बहरहाल राज्य सरकार के अगर पिछले दस सालों का हिसाब देखें तो यह आंकड़ा डेढ़ हजार करोड़ स्र्पए तक पहुंच जाता है और इतनी बड़ी राशि खर्च हो जाने के बाद भी शहर की हालत खस्ताहाल और मरियल है। ऐसे में अगर शहर को स्मार्ट सिटी का दर्जा देकर केंद्र 5 सौ करोड़ स्र्पए देता है, तो क्या इतनी राशि से शहर स्मार्ट हो पाएगा? यह सवाल भी है और आम जनता के लिए संदेश भी? अब आम जनता को सोचना और समझना है कि क्या यह किसी भी तरह से मुमकिन होता नजर आ रहा है या नहीं? इसी संदेहास्पद स्थिति के मद्देनजर कांग्रेसी खेमे ने इस पूरी योजना को झूठा और सब्जबाग दिखाने वाला बता रहे हैं, तो वहीं भाजपा खेमे को इससे बड़े परिवर्तन की उम्मीद है। 

राज्य शासन की कमेटी में राजधानी रायपुर और बिलासपुर को स्मार्ट सिटी के लिए चुना गया और प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेज दिया है। उम्मीद की जा रही है कि इस पर केंद्र सरकार की मुहर लग जाएगी। शहर को स्मार्ट बनाने के लिए केंद्र सरकार चार किस्तों में पांच सौ करोड़ नगर निगम को देगी। इतनी राशि से शहर को स्मार्ट बनाया जाएगा। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या इतनी राशि से शहर स्मार्ट हो जाएगा क्योंकि निगम ने तो पिछले चार साल में ही 12 सौ करोड़ स्र्पए फूंक चुका है बावजूद इसके आज तक शहर, ठीक तरीके से शहर नहीं बना पाएं हैं तो स्मार्ट सिटी" वो भी सिर्फ पांच सौ करोड़ रुपये में, क्या यह संभव प्रतीत हो रहा है? साढ़े बारह सौ करोड़ फूंकने के बाद भी यहां पर यातायात, बिजली, सड़क, नाली, पानी, चिकित्सा जैसी समस्या दस वर्षों से स्थावत है। और पांच सौ करोड़ की राशि से चौड़ी सड़कें,ओवरब्रिज, चौबीसों घंटे पानी, बिजली, बसस्टैंड, चिकित्सा, इंटरनेट के आधुनिक उपकरण आदि कैसे उपलब्ध हो पाएगा? इन सब मुद्दों को देखते हुए कांग्रेसी जहां इस पूरी योजना को झूठा बता रहे हैं। वहीं भाजपाइयों को पूरी उम्मीद है कि प्लानिंग के साथ राशि खर्च की गई तो शहर को स्मार्ट बनाया जा सकता है। अब मामला केंद्र सरकार के पाले में है। जिस पर जल्द ही मुहर लगने का इंतजार किया जा रहा है। क्योंकि जैसे ही शहर स्मार्ट सिटी के लिए चयनित हुआ वैसे ही विकास कार्यों के लिए 2 सौ करोड़ स्र्पए की पहली किस्त निगम को मिल जाएगी। इसके बाद विकास कार्य शुरू हो जाएगा। संभावना तो जताई ही जा सकती है कि 2 सौ करोड़ रुपये की राशि का सदुपयोग होगा और वास्तविक विकास होगा। न कि पहले की ही तरह दो सौ करोड़ रुपये भी खर्च होने के बाद स्थिति आज की ही तरह बनी रहेगी। 

पांच साल में खर्च राशि 

2009 -10 - 10205.67
2010 -11 - 15139.89
2011 -12 - 19632.96
2012 -13 - 49381.97
2013 -14 - 25705.41

केंद्र से इस तरह मिलेगा फंड स्मार्ट सिटी के तय मापदंड के अनुसार चयन होने के बाद शहर को 200 करोड़ स्र्पए मिलेंगे। इसके बाद तीन किस्तों में सौ-सौ करोड़ स्र्पए मिलेंगे। इस तरह कुल मिलाकर केंद्र सरकार स्मार्ट सिटी के लिए 500 करोड़ स्र्पए देगी। इसके अतिरिक्त राशि निगम और राज्य शासन देगा। निजी ठेकेदारों के हवाले शहर को स्मार्ट सिटी बनाने का जिम्मा निजी ठेकेदारों को होगा। केंद्र और राज्य शासन की राशि आधारभूत संरचना तैयार करने में खर्च होगी। इसके अलावा इस काम में बड़े उद्योगपतियों को भी लाया जाएगा, जो लोगों से शुल्क वसूल कर या स्मार्ट सिटी के दायरे में आने वाली सरकारी संपत्ति को बेचकर शहर को स्मार्ट बनाएंगे। पहले चरण में 30 शहर स्मार्ट सिटी के तहत देशभर के 100 शहरों का चयन किया जाना है। निगम अधिकारियों को मिल रही जानकारी के अनुसार पहले चरण में केवल 30 शहरों का चयन किया जाना है। शेष 70 शहरों का चयन अगले चरणों में किया जाएगा। प्रथम तीस शहरों में प्रदेश की राजधानी और पुराने बड़े शहरों का चयन किया जाना है। इसके बाद अगले किस्त में बाकी शहरों का नाम आएगा। इस लिहाज से आशंका जताई जा रही है कि शहर को स्मार्ट सिटी घोषित होने में और समय लग सकता है। 

* जिस शहर में बिजली का सब स्टेशन और शौचालय बनाने के लिए जगह नहीं मिलती है उसको कैसे स्मार्ट बनाएंगे यह अब तक रहस्य है। सबसे पहले तो लोगों को बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर देना होगा। इसका क्या प्लान है यह किसी को नहीं पता है। शहर के नेता तो दस साल में दो हजार करोड़ खर्च करने का दावा करते हैं। इसके बाद भी शहर का क्या हाल है सब देख रहे हैं। ऐसे में केवल पांच सौ करोड़ से कैसे तकदीर बदलेगी यह समझ से परे है। स्मार्ट सिटी केवल लॉलीपाप साबित होने वाली है। - सुमित दास, आर्किटेक्ट व सामाजिक कार्यकर्ता 

* स्मार्ट सिटी की योजना केवल किताबी है। यह कभी कागजों से बाहर नहीं आ पाएगी। नगर निगम क्षेत्र ही 8 हजार एकड़ में फैला है। स्मार्ट सिटी में इसमें से 5 सौ एकड़ को विकसित किया जाना है। ऐसे में शेष शहर का क्या होगा। पूरे शहर में करों का बोझ बढ़ेगा और लोगों की मेहनत की कमाई इसी 5 सौ एकड़ में समा जाएगी। शेष शहर का क्या होगा यह किसी को नहीं पता है। जब तक शहर में 29 गांव नहीं जुड़ेंगे तब तक आप यहां न तो कोई योजना बना पाएंगे और न ही शहर स्मार्ट बन सकता है। मूल जरूरतों पर सरकार का ध्यान नहीं है। - प्रवक्ता, कांग्रेस 

* नगर निगम ने पहले जो राशि खर्च की है, उससे हमने आधारभूत संरचना तैयार किया है। अब स्मार्ट सिटी के लिए जो राशि आएगी उससे फिनिशिंग का काम करवाएंगे। इसके अलावा भी अगर राशि लगेगी तो राज्य शासन से मिलेगी। सबसे अच्छी बात यह है कि स्मार्ट सिटी घोषित होने के बाद हमारा शहर देश के नक्शे पर आ जाएगा और यहां कोई भी काम होगा उसे इंटरनेट के माध्यम से दिल्ली में देखा जा सकता है। इससे शहर विकास में फर्क तो पड़ेगा। - अध्यक्ष, नगर निगम 

* स्मार्ट सिटी बनाने के लिए 500 करोड़ स्र्पए का सहयोग केंद्र सरकार दे रही है। इससे अधिक राशि लगेगी तो उसकी व्यवस्था राज्य शासन करेगी। स्मार्ट सिटी घोषित होने के बाद हम देश के सौ चुनिंदा शहरों में शामिल हो जाएंगे। यह अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। इसके अलावा जो फंड आएगा,उसे पूरी योजना बनाकर शहर विकास के हिसाब से खर्च किया जाएगा। नि:संदेह स्मार्ट सिटी घोषित होने के बाद शहर का नक्शा बदल जाएगा। - महापौर, नगर निगम