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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर सरकार ने बैन कीं 857 पॉर्न साइट्स

नई दिल्ली 03 अगस्त 2015 (IMNB). भारत सरकार ने टेलिकॉम ऑपरेटरों और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडरों को 857 पॉर्न साइट्स को ब्लॉक करने को कहा है। सरकार के इस कदम को नागरिकों के निजी जीवन में सेंध और अपने घर की चारदीवारी में अडल्ट कॉन्टेंट देखने के अधिकार का हनन माना जा रहा है। यूजर्स ने शिकायत की कि कुछ ऐसी अडल्ट वेबसाइट्स भी ब्लॉक कर दी गई हैं जिनमें कोई पॉर्नोग्रफिक कॉन्टेंट नहीं है।

उन्होंने यह भी कहा कि सरकार चाइल्ड पॉर्न के खिलाफ कदम उठाने की आड़ लेकर इन वेबसाइट्स पर ऐक्शन ले रही है और नागरिकों के निजी जीवन में हस्तक्षेप कर रही है। हालांकि, सरकारी सूत्रों ने इस तरह की किसी भी कार्रवाई से इनकार किया। उन्होंने कहा, टेलिकॉम विभाग में ऐक्सेस न मिलना अस्थायी था और यह रेग्युलर नियंत्रण लाने से पहले का एक प्रयास था। उन्होंने कहा कि यह निर्देश पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट द्वारा चाइल्ड पॉर्नोग्रफी रोकने में गृह मंत्रालय के असफल प्रयासों पर की गई टिप्पणी के कारण जरूरी हो गया था और दावा भी किया कि इसके पीछे लोगों के निजी जीवन में बाधक बनने की कोई मंशा नहीं थी। टेलिकॉम कम्पनियों के एग्जेक्युटिव्स ने कहा कि सभी साइट्स को एक साथ तत्काल ब्लॉक किया जाना संभव नहीं है। नाम न बताने की शर्त पर एक एग्जेक्युटिव ने कहा कि, 'हमें एक-एक कर साइट्स को ब्लॉक करना होता है और सभी सर्विस प्रोवाइडरों को सारी साइट्स ब्लॉक करने में वक्त लगेगा।' हालांकि, यह इनकार उन लोगों को पच नहीं रहा है, जो मानते हैं कि वर्तमान में सेक्स को लेकर हमारे यहां असहज होने वाले लोगों की बहुलता है और यह रोक वेब को पॉर्न को वेब मुक्त करने की बड़ी कोशिश का शुरुआती हिस्सा हो सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताते हुए कहा था कि एक नागरिक को अपने बेडरूम में अडल्ट वेबसाइट्स देखने से नहीं रोका जाना चाहिए। 

टेलिकॉम विभाग के सूत्रों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के आधार पर सरकार का विचार सिर्फ उन तरीकों पर रोक लगाने तक सीमित है जिनके तहत साइबर कैफे जैसी जगहों पर इन साइट्स को सार्वजनिक रूप से न देखा जा सके। सूत्रों ने कहा, 'यह आदेश आर्टिकल 19(2) सूचना तकनीक कानून के प्रावधानों के तहत ही है जिनके मुताबिक सरकार के पास शालीनता और नैतिकता के संरक्षण के लिए प्रतिबंध लगाने का अधिकार है। ' आलोचकों ने जोर दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने बैन लगाने के लिए नहीं कहा था। प्रमुख न्यायाधीश एच.एल दत्तु की एक बैंच ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन किया था। बेंच ने कहा था, 'इस मुद्दे से सरकार को निपटना होगा। क्या हम सभी अडल्ट वेबसाइट्स को ब्लॉक करने के लिए अंतरिम आदेश ला सकते हैं? और यह ध्यान रहे कि हमसे कोई व्यक्ति जरूर यह पूछेगा, कि मैंने अडल्ट वेबसाइट अपने घर की चारदीवारी के भीतर देखकर क्या अपराध किया है। क्या वह बिना किसी कानून का उल्लंघन किये अपने घर की चारदीवारी में कुछ भी करने की स्वतंत्रता के अधिकार पर सवाल नहीं उठाएगा?'