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रायपुर - सुप्रीम कोर्ट ने कई बिंदुओं पर खड़े किए सवाल, प्रोजेक्‍ट कमल विहार का हाल फिर से बेहाल

रायपुर 11 अगस्‍त 2015(जावेद अख्तर). छत्तीसगढ़ राज्य की भाजपा सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट कमल विहार के जमीन अधिग्रहण के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट ने स्कीम के कई बिंदुओं पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। 4 लोगों को अधिग्रहण मामले में राहत तो मिल गई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के सवालों और आपत्तियों को लेकर इससे जुड़े सभी लोगों के लिए संकट खड़ा हो गया है। कमल विहार का पर्यावरण क्लियरेंस ठीक नहीं है। 2300 एकड़ के प्रोजेक्ट का हवाला देकर पर्यावरण क्लियरेंस लिया गया था, लेकिन बाद में आरडीए की समिति ने प्रोजेक्ट को ही बदल दिया।

इतना ही नहीं, आरडीए की समिति ने कमल विहार का जो मास्टर प्लान तैयार किया है, उसे भी सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक और गैरकानूनी बताया है। कमल विहार की समिति को ही अमान्य करार दिया गया है। कमल विहार प्रोजेक्ट के मसले पर शासन की ओर से कहा गया है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कानूनी सलाह लेगी और रिव्यू पिटिशन के मसले पर फैसला लिया जाएगा। कमल विहार के प्रोजेक्ट का जब पर्यावरण क्लियरेंस लिया गया, तब यह 2300 एकड़ की योजना का था। इसे मंजूरी मिल गई थी। बाद में जब निर्माण कार्य शुरू होने थे, तब इसी कमल विहार की योजना में 1600 एकड़ का फैलाव कर दिया गया। भारतीय संविधान के तहत विभाग के नियम द्वारा देखा जाए तो जब योजना में इस कदर बदलाव कर दिया गया तो पुराने पर्यारवण क्लियरेंस का कोई महत्व नहीं रह जाता है। ऐसे में कानूनन कमल विहार वर्तमान में बिना पर्यावरण क्लियरेंस का ही माना जा सकता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने एक तरह से अवैध बताया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसी बात पर आपत्ति जताई है कि जब नया रायपुर में विकास के कई बड़े प्रोजेक्ट संचालित हैं तो पुराना रायपुर में इतने बड़े प्रोजेक्ट को लाने का क्या मकसद था? सर्वोच्च न्यायालय ने आपत्ति इस बात पर भी उठाई है कि सरकार यह कैसे तय कर सकती है कि कमल विहार में जमीन मालिकों को 35 फीसदी से ज्यादा जमीन नहीं दी जाएगी। अगर सरकार द्वारा 35 फीसदी ही जमीन दी जा रही है तो बाकी जमीन के लिए प्लॉट मालिक मुआवजे का हकदार होगा। 

कोई आपत्ति न करे, इसलिए 20 दिनों में दे दी मंजूरी
वर्ष 2008 में आवास एवं पर्यावरण मंत्री गणेशराम भगत के नेतृत्व में पुराने रायपुर में ही कमल विहार के 900 एकड़ का प्रोजेक्ट आरडीए की ओर से सरकार को भेजा गया था। सरकार ने तब नया रायपुर में विकास का हवाला देकर इसे नामंजूर कर दिया। बाद में इस पर कुछ नेताओं ने जोर दिया तो 900 एकड़ को घटाकर 400 एकड़ की मंजूरी दी गई। बाद में जब इस विभाग की जिम्मेदारी मंत्री राजेश मूणत को दी गई तो कमल विहार का 2300 एकड़ का प्रोजेक्ट बनाया गया। इतना ही नहीं, इसे सरकार ने मई 2009 में नया रायपुर के विकास को दरकिनार कर महज 20 दिनों में ही अपनी मंजूरी प्रदान कर दी। ऐसा इसलिए किया गया, ताकि इस पर किसी को आपत्ति करने का भी मौका न मिले। हैरानी की बात यह है कि जब इसे मंजूरी दी गई, तब एसएस बजाज ने ही आरडीए अध्यक्ष होते हुए इसका प्रस्ताव बनाया था। उन्होंने खुद ही आवास एवं पर्यावरण विभाग के विशेष सचिव रहते हुए इसे मंजूरी दे दी। बाद में उन्होंने ही नगर एवं ग्राम निवेशक के बतौर संचालक की हैसियत से भी इसे टीडीएस के तहत मंजूरी प्रदान कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने एक ही व्यक्ति द्वारा प्रोजेक्ट बनाकर इसे मंजूरी प्रदान करने पर भी आपत्ति जताई है। 

मास्टर प्लान में बदलाव अमान्य
कमल विहार के मास्टर प्लान को सुप्रीम कोर्ट ने अमान्य करार दिया है। इसमें कहा गया है कि मास्टर प्लान को जिला योजना समिति की ओर से पास कराया जाना था। इसमें एक निर्वाचित लोगों की टीम होती है, जिसमें आर्किटेक्ट, नेता, ग्राम पंचायत के सदस्य और टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के अधिकारियों की टीम शामिल होती है। सभी मिलकर मास्टर प्लान बनाते हैं, लेकिन कमल विहार में तो खुद आरडीए ने ही अपना नया मास्टर प्लान अपने हिसाब से बना लिया है, जो कि अवैध है। 

योजना को पूर्ण करने के लिए ये कदम उठाना जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने जिन बिंदुओं पर सवाल खड़ा किया है, उससे कमल विहार प्रोजेक्ट के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा हो गया है। सरकार को इसे साफ-सुथरा बनाने के लिए कई अहम कदम उठाने होंगे। 

- कमल विहार में जिनकी जमीन को अधिगृहीत किया गया है, उन्हें 35 फीसदी के बजाय पूरी जमीन देना होगा। जिनकी जमीन रोड और नाली निर्माण में उपयोग हो रही है, उन्हें उसका पूरा मुआवजा देना होगा। कुल मिलाकर अगर 35 फीसदी तक ही जमीन दिए जाने का फैसला लिया जाता है तो सभी को 65 फीसदी का पूरा मुआवजा देना होगा। 

- मास्टर प्लान के लिए जिला योजना समिति से भी अनुमति लेनी होगी। इसके लिए शासन को ऐसे किसी समिति से पूरे प्रोजेक्ट के मास्टर प्लान का नए सिरे से रिव्यूू करवाना होगा। 

- सरकार को अब फाइनल हुए प्रोजेक्ट के 1600 एकड़ के हिसाब से नया पर्यावरण क्लीयरेंस लेना होगा। यह बेहद ही जरूरी है, नहीं तो इस प्रोजेक्ट को अमान्य करार दिया जाएगा। 

- सरकार को यह भी बताना होगा कि नया रायपुर में जब विकास के काम चल रहे हैं, तो पुराने रायपुर क्षेत्र में इस कमल विहार प्रोजेक्ट को लाने की जरूरत क्यों पड़ी? 

कमल विहार में भूमि का अधिग्रहण बिना किसानों की अनुमति के जमीन अधिगृहीत की गई जोकि भूमि अधिग्रहण में 2013 के कानून का उल्लंघन दर्शाता है। माननीय उच्चतम न्यायालय, नई दिल्ली के फैसले का सम्मान करना चाहिए और राज्य सरकार को अपने फैसले को बदलना चाहिए। भूमि अधिग्रहण के मसले पर आम जनसुनवाई के बाद ही कोई निर्णय लेना चाहिए। राज्य सरकार को अपनी कार्यप्रणाली में भी सुधार करना चाहिए और सर्वप्रथम आम जनता व गरीब किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए ही योजना लागू करनी चाहिए। देखा जाए तो कमल विहार योजना में भी कई ऐसे कार्य किए जा रहे हैं जोकि संविधान के नजरिए उपयुक्त नहीं माना जा सकता है। परन्तु राज्य सरकार अपनी बेवजह की नीतियों का बोझ इस योजना पर लादती जा रही है, कमल विहार में भूमि या आवास खरीदने वालों को भविष्य में इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

मैं तो इतना कहूंगा कि कमल विहार का पूरा प्रोजेक्ट ही अवैध रूप से तैयार किया गया है। इसके स्कीम के सभी प्रमुख बिंदुओं पर सर्वोच्च न्यायालय ने आपत्ति जताई है। इस मामले में हम कुछ और आपत्तियों को लेकर कोर्ट में जाने की तैयारी कर रहे हैं। - रोहित शुक्ला, याचिकाकर्ता, कमल विहार प्रकरण 

आपत्ति नहीं आई थी, इसलिए इसे जल्द ही मंजूरी मिल गई। वैसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हम कानूनी सलाह ले रहे हैं। इसके बाद ही रिव्यू पिटिशन या किसी निर्णय के मसले पर फैसला लिया जाएगा। - एसएस बजाज, संचालक, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग