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छत्‍तीसगढ - कुष्ठ रोग मुक्ति अभियान का खूब बजा ढोल, सहायतार्थ राशि में गबन से खुल गई पोल

रायपुर 20 जुलाई 2015 (जावेद अख्तर). प्रदेश की राजधानी रायपुर में सबसे अधिक कुष्ठ रोगियों की संख्या होने से समझा जा सकता है कि कैसे कुष्ठ रोगियों की संख्या के आंकड़ों में हेरफेर करके लाखों करोड़ों रुपये की बंदर बांट विभाग में की गयी है। वर्ष 2013-14 में कुष्ठ रोग मुक्त अभियान का जमकर प्रचार प्रसार किया गया मतलब खूब ढोल बजाया गया, केन्द्र व राज्य शासन द्वारा स्वास्थ्य विभाग में कुष्ठ रोग के लिए अलग से बड़ा बजट दिया जाता है मगर यह बजट भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया।
विदित हो कि कुष्ठ रोगियों के इलाज व अन्य सुविधाओं के नाम पर मिलने वाली राशि को शासकीय अधिकारी व कर्मचारी मिलकर डकार गए हैं और कुष्ठ रोगियों की स्थिति जो पिछले वर्ष थी उससे बदतर स्थिति इस वर्ष हो गई है। विभाग के अधिकारियों ने मात्र कागजों में ही 29 करोड़ रुपए की राशि का खर्च दिखा दिया है और कर्मचारियों ने बाकी की कसर पूरी करते हुए राजधानी के अलावा अन्य जिलों में लगभग 57 करोड़ रुपये का खर्च दिखा दिया है। सोचिए इतनी अधिक राशि खर्च होने के बावजूद भी इस वर्ष कुष्ठ रोगियों की संख्या में जबरदस्त इजाफा हो गया है। लगभग 9 हजार कुष्ठ रोगियों का नाम, पता व प्रतिमाह योजना के तहत निर्धारित राशि दी जा रही है जबकि जांच से ढोल के अंदर की पूरी पोल खुल गई, क्योंकि लगभग 6800 कुष्ठ रोगियों की जानकारी पूरी तरह फर्जी है। जबकि इनको 4 वर्षों से लगातार प्रतिमाह भुगतान किया गया है। अगर मात्र 900 रूपए के हिसाब से आंकलन करने पर 61,20,000/- ( इक्सठ लाख बीस हजार रुपये) प्रतिमाह फर्जी भुगतान 4 वर्षों से किया जा रहा है तो एक वर्ष में 7 करोड़ 34 लाख चालीस हजार रुपये और चार वर्ष में 29 करोड़ 37 लाख 60 हजार रुपये का घोटाला तो सबूत सहित शासकीय विभाग में ही रखा हुआ है। विभागीय सूत्रों के मुताबिक जानकारी मिली है कि दो बाबूओं ने मिलकर लगभग 18 करोड़ रुपए का फर्जीवाड़ा भुगतान करने के दौरान दस्तावेजों में आंकड़ों का हेरफेर करके किया है। इस फर्जीवाड़े में अधिकारियों की पूरी पूरी मिलीभगत है। क्योंकि तीन वर्षों में बिना दस्तावेजों की जांच किए चेक द्वारा भुगतान कई बार में किया गया है। और विश्वस्त सूत्रों ने बताया कि कुष्ठ रोगियों को निर्धारित राशि से कम राशि का भुगतान प्रतिमाह दिया जाता है, राशि के वितरण के समय हरेक कुष्ठ रोगी की निर्धारित राशि में से 35-50 रूपए कम करके दिया जाता है जिसकी जानकारी अधिकारियों को भी है मगर जांच से पता चला कि अधिकारियों की सहमति से ही यह घृणित कार्य किया जाता है।
सामान्य तौर पर देखें तो प्रतिमाह कटौती से लगभग 1 लाख 80 हजार रूपए का घोटाला सबके सामने किया जाता है। एक वर्ष में 21 लाख 60 हजार रुपये तथा तीन वर्ष में 64 लाख 80 हजार रुपये का भ्रष्टाचार किया जा चुका है। गुप्त सूत्रों से सूचना मिली है कि इलाज के नाम पर प्रतिमाह 600 रूपए मिलने वाली राशि में भी कटौती की जा रही है, लगभग प्रति रोगी से 30 रूपए की कटौती की जाती है। 9 जिलों में से कटौती स्वरूप प्रतिमाह 1 लाख 10 हजार रुपये काट लिया जाता है यानि कि एक वर्ष में 12 लाख 60 हजार रुपये व चार वर्ष में 50 लाख 40 हजार रुपये का डाका डाला जा चुका है। शासकीय विभाग में इतना अधिक भ्रष्टाचार घर कर गया है कि कुष्ठ रोगियों की सहायता राशि, भोजन, जीवन यापन के लिए केन्द्र से मिलने वाली राशि, और अन्य सुविधाओं के लिए मिलने वाली सहायतार्थ राशि में भी डाका डाल रहें हैं और उन गरीब कुष्ठ रोगियों के हक़ को भी मारने से बाज़ नहीं आ रहें हैं। और राज्य सरकार दावा करती है कि कुष्ठ रोगियों पर नियंत्रण लगा लिया गया है। छत्तीसगढ़ शासन में व्याप्त भ्रष्टाचार में और एक नया सच सामने आया है जोकि योजना में प्राप्त राशि के बंदरबांट को प्रमाणित करता है। ढाई हजार में एक व्यक्ति कुष्ठ रोग से पीड़ित है और देश में सर्वाधिक कुष्ठ रोग के मरीजों की संख्या छत्‍तीसगढ़ राज्य में है। देश में कुष्ठ पीड़ितों की संख्या प्रदेश में सर्वाधिक है। आंकड़े इस बात के गवाह हैं, कि बीते 2 साल से पीड़ितों की संख्या 8 हजार से अधिक हो गई है। राष्ट्रीय औसत और भारत सरकार की गाइड-लाइन के मुताबिक प्रति 10 हजार की आबादी में 1 व्यक्ति कुष्ठ पीड़ित हो सकता है, लेकिन छत्तीसगढ़ में आंकड़ा चौंकाने वाला है। यहां ढाई हजार की आबादी में एक व्यक्ति कुष्ठ का शिकार है। खुद केंद्र सरकार इसे लेकर राज्य को आगाह कर चुकी है। केंद्र तो सर्वे करवाने तक के निर्देश दिए थे, लेकिन आज दिनांक तक सर्वे शुरू नहीं हो सका है। राज्य स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार, राज्य में वर्ष 2003 में कुष्ठ रोग की प्रभाव दर प्रत्येक दस हजार की आबादी पर 8.2 थी, जो घटकर नवम्बर 2013 तक 2.48 और मार्च 2014 तक 2.21 हो गयी है। प्रदेश के 27 में से 9 जिलों, महासमुंद, रायपुर, रायगढ़, जांजगीर-चाम्पा, बिलासपुर, बलौदाबाजार-भाटापारा, दुर्ग, कोरबा और कबीरधाम (कवर्धा) में इस बीमारी प्रसार दर अधिक होने के कारण इन जिलों में इसके इलाज के लिए सघन अभियान चलाया जा रहा है। विभागीय अधिकारियों के अनुसार, प्रदेश में नवम्बर 2014 की स्थिति में 6 हजार 375 मरीजों का इलाज बहुऔषधि उपचार प्रणाली के जरिए किया गया था। प्रदेश के 4 जिले जिनमें रायपुर, दुर्ग, महासमुंद और रायगढ़ में सर्वाधिक पीड़ित मरीज मिले थे। कुष्ठ नियंत्रण कार्यक्रम से जुड़े राज्य के कई वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी से बात की, उन्होंने बताया कि कुष्ठ पूरी तरह से और सही गणना में डाग्नोस ही नहीं हो पा रहा है, जो मरीज खुद चलकर स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंच रहे हैं, आंकड़े उनके ही हैं। अगर सर्वे होता है तो आंकड़े हड़कंप मचा सकते हैं और कुष्ठ रोग मुक्त अभियान की असलियत को भी उजागर कर देगा, इस वजह से आज तक समस्त प्रदेश का सर्वेक्षण विभाग ने नहीं करवाया है और न ही ऐसी कोई मंशा ही है। इतनी उठापटक और जद्दोजहद के बावजूद भी परिणाम संतुष्टिजनक नहीं मिला, यही वजह है कि स्वास्थ्य विभाग ने कुष्ठ मुक्ति अभियान 'स्पर्श 2015' को लागू कर दिया है, जिसका शुभारंभ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा द्वारा किया गया। वर्तमान वर्ष 2015 में राज्य स्वास्थ्य विभाग की मानें तो 27 में से 18 जिलों में कुष्ठ खोज अभियान चलाया जा रहा है। जिलों में रायगढ़, महासमुन्द, जांजगीर-चांपा, रायपुर, कोरबा, बिलासपुर, दुर्ग, बलौदाबाजार, बस्तर (जगदलपुर), धमतरी, बालोद, बेमेतरा, सरगुजा, जशपुर, राजनांदगांव, मुंगेली, कवर्धा और गरियाबंद शामिल हैं। जबकि अभी भी 9 जिलों को छोड़कर कार्ययोजना संचालित की जा रही है। स्वास्थ्य संचालनालय में पदस्थ कुष्ठ अधिकारियों के अनुसार, राज्य में 6 हजार 306 मरीजों का इलाज बहु-औषधि उपचार प्रणाली (एमडीटी) से किया गया था और वर्तमान परिस्थिति में गांवों और शहरों की मितानिनों को भी कुष्ठ उन्मूलन के काम में लगाया गया है। उन्हें कुष्ठ के संभावित मरीजों की पहचान करने तथा निकटवर्ती सरकारी अस्पताल तक लाने की जिम्मेदारी दी गई है। सरकारी अस्पताल में कुष्ठ रोग का सत्यापन होने पर 250 रुपए, 6 माह तक इलाज पूर्ण होने पर 400 रुपए और 12 माह तक इलाज पूर्ण होने पर 600 रुपए प्रति मरीज के हिसाब से मितानिन को प्रोत्साहन राशि का प्रावधान है। राज्य गठन के बाद से अब तक 2217 ऑपरेशन हुए हैं। शासकीय अधिकारी ने कहा है कि प्रदेश में कुष्ठ मरीजों की संख्या में कमी आई है। अब मितानीनों को भी मरीज खोजने की जिम्मेदारी दी गई है। उन्हें इसके लिए प्रोत्साहन राशि भी दी जा रही है। कुष्ठ पर काम करने वाले व्यक्तियों, एनजीओ को सम्मानित किया जाएगा। - आर. प्रसन्ना, संचालक, स्वास्थ्य सेवाए क्या कहती है भारत सरकार की रिपोर्ट -- देश में 1955 से कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम चल रह है। कुष्ठ पीड़ितों पर आखिरी बार राष्ट्रीय स्तर पर 2009 में सर्वे हुआ था। रिपोर्ट के मुताबिक 32 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने कुष्ठ उन्मूलन का लक्ष्‌य हासिल कर लिया था। लेकिन बिहार, छत्तीसगढ़ और दादर व नगर हवेली में 10 हजार की जनसंख्या पर 1 से अधिक व्यक्ति पीड़ित है।

 छत्तीसगढ़ राज्य स्वास्थ्य विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़े 

2012-13  में कुष्ठ रोगियों की संख्या 7642
सर्वाधिक रोगी
रायपुर
853
दुर्ग
749
महासमुंद
871
रायगढ़
1221

2013-14 में कुष्ठ रोगियों की संख्या 8307
सर्वाधिक रोगी
रायपुर
856
दुर्ग
850
महासमुंद
819
रायगढ़
1297

2014-15 में कुष्ठ रोगियों की संख्या 8289
सर्वाधिक रोगी
रायपुर
847
महासमुंद
758
दुर्ग
903
रायगढ़
1517

राज्य स्वास्थ्य विभाग की वेबसाइट पर यह आंकड़ा दर्शाया गया है और लगातार 4 वर्षों से इसी प्रकार राज्य स्वास्थ्य विभाग की वेबसाइट पर आंकड़ा अपडेट किया गया है। जबकि योजना के अंतर्गत सभी जिलों के आंकड़ों का अपडेशन किया जाना चाहिए था मगर ऐसा नहीं किया गया है। इस आधे अधूरे अपडेशन पर आजतक विभाग के किसी भी अधिकारी ने आपत्ति दर्ज नहीं कराई है और न ही आंकड़ों में सुधार लाने की कोशिश की गई है। राज्य स्वास्थ्य विभाग द्वारा 18 जिलों में कुष्ठ खोज अभियान चलाया गया मगर सरकारी वेबसाइट पर रिकार्ड महज़ 4 जिलों का अपलोड किया गया। प्रश्न उठता है कि आखिर इस अभियान की वास्तविक रिपोर्ट 18 जिलों की, सरकारी वेबसाइट पर क्यों लोड नहीं किया गया ? यह जांच का विषय है क्योंकि एक हिसाब से यह भी भ्रष्टाचार का ही मामला बनता है। पिछले 4 वर्षों में स्वास्थ्य विभाग समेत राज्य सरकार का ध्यान इस ओर नहीं जाना भी कार्यप्रणाली में नि‍ष्क्रियता दर्शाता है। राष्ट्रीय स्तर की हयूमन विल पावर एंड प्रोग्रेसिव वेलफेयर नामक एनजीओ द्वारा प्रदेश में कुष्ठ रोग पर वर्ष 2014-15 में सर्वेक्षण किया गया, जिससे समझ आया कि सरकारी आंकड़े पूरी तरह भ्रामक और गलत है। यहाँ तक कि केन्द्रीय स्वास्थ्य विभाग को दी गई जानकारी भी पूरी तरह सही नहीं है। सरकारी दस्तावेजों में आंकड़ों का खेल खेला गया है और रिपोर्ट में गलत आंकड़ों को दर्शाया गया है। यानि कि छत्तीसगढ़ में कुष्ठ रोग पर नियंत्रण लगाने की बात और कुष्ठ रोग मुक्त अभियान को सफल बताने वाली बात झूठी है। जबकि वास्तविकता पूरी तरह सरकारी आंकड़ों को झूठा साबित कर दी है। छग में कुष्ठ रोगियों पर नियंत्रण करने में विभाग पिछले 2 वर्षों में पूरी तरह असफल साबित हुआ। जिसका परिणाम है कि असलियत में कुष्ठ रोगियों की संख्या अधिक हो गई है। पिछले वर्ष भी कुष्ठ रोगियों की संख्या में लगभग 2700 नये रोगियों की संख्या बढ़ गई तो वहीं इस वर्ष भी लगभग 4300 नये मरीजों की संख्या बढ़ गई है। सभी 18 जिलों में रोगियों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और राज्य स्वास्थ्य विभाग अपनी निकम्मेपन व असफलता को स्वीकार करने की बजाए कार्यालयों में बैठकर सरकारी वेबसाइट पर गलत और झूठी जानकारी अपलोड कर रहें और मस्ती मजा कर रहें हैं। केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा आवंटित बजट का दुरूपयोग विभाग कर रहा है।
विभाग द्वारा जारी की गई कुष्ठ रोगियों की जांच रिपोर्ट में भी ऐसी ही पचासों गलतियां हैं और दस्तावेजों के आंकड़ों में हेरफेर करके भ्रष्टाचार किया जा रहा है। विभाग के भ्रष्ट अधिकारी व कर्मचारी बजट की राशि से अपना अपना काला साम्राज्‍य बढ़ाते जा रहें हैं और गरीब रोगी गरीबी, इलाज व अन्य सुविधा न मिलने के कारण तड़प तड़प कर मर रहा है। एनजीओ द्वारा वास्तविक रिपोर्ट वर्ष 2014-15 में कुष्ठ रोगियों की छत्तीसगढ़ में राज्य स्वास्थ्य विभाग द्वारा चयनित 18 जिलों के अनुसार इस प्रकार से है -



जिला
कुष्‍ठ रोगी
जिला
कुष्‍ठ रोगी
रायपुर
1982
जशपुर
837
कोरबा
890
धमतरी
599
बेमेतरा
680
सरगुजा
667
मुंगेली
1099
रायगढ़
1750
बालोद
1007
अंबिकापुर
977
महासमुंद
1797
गरियाबंद
1239
बिलासपुर
1160
राजनांदगांव
871
दुर्ग-भिलाई
1639
जांजगीर-चांपा
781
कबीरधाम
734
बस्तर
1579













वर्ष 2014-15, छग प्रदेश में 21,232 कुष्ठ रोगियों की पहचान तक की गई मगर विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार से कुष्ठ रोगी शासन की योजनाओं के लाभ से वंचित है। जबकि दस्तावेजों में आंकड़ों के हेराफेरी का खेल बीते कई वर्षों से लगातार किया गया और शासन से प्राप्त मद का दुरूपयोग किया गया। आंकड़ा दर्शाता है कि छत्तीसगढ़ में कुष्ठ रोगियों की संख्या सबसे अधिक राजधानी रायपुर में है। कुष्ठ रोगियों पर चलाये जाने वाली योजनाओं द्वारा विभाग को राशि आवंटित किया गया, उसमें बंदरबांट हो गया। वैसे भी प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग भ्रष्टाचार, गबन, घोटाला और अपनी अड़ियलबाज़ी के लिए काफी प्रसिद्ध है। शासकीय अधिकारी व कर्मचारी शासन की योजना कुष्ठ रोग मुक्त अभियान को पलीता लगा रहें हैं और राशि का उपयोग स्वंय के व्यक्तिगत स्वार्थ व आवश्यकताओं की पूर्ति में करने में कर रहें हैं। जबकि राज्य सरकार को भी कई बातें पता है मगर मंत्री व संत्री कार्रवाई करने की बजाए उन्हें शह दे रहें हैं तथा अधिक भ्रष्टाचार करने के लिए प्रेरित भी कर रहें हैं।