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छत्तीसगढ़ - गलती करे शिक्षण संस्थान, विधार्थी भरें भुगतान. ये कैसी है प्रक्रिया, कैसा है ये प्रावधान



छत्तीसगढ़ 28 जुलाई 2015 (जावेद अख्तर ). छत्तीसगढ़ के जिले कोरबा में आईटी कॉलेज कोरबा शिक्षण संस्थान ने विधार्थियों की भर्ती में नियम व प्रावधानों के खिलाफ जाकर भर्ती प्रक्रिया पूर्ण की थी जिसकी शिकायत पर एएफआरसी ने विस्तृत जांच की जिसमें शिकायत की पुष्टि हुई है। प्रश्‍न ये उठता है कि इस मामले में सिर्फ शिक्षण संस्थान ही दोषी है या फिर इनमें भी कई सफेदपोश हस्तियों की भूमिका है।
एएफआरसी के नियमों के अनुसार ही देखा जाए तो विभाग को प्रत्येक वर्ष की भर्ती प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद सभी दस्तावेज भेजा जाता है।अब प्रश्न उठता है कि बीते 4 वर्षों से यह अवैधानिक प्रक्रिया विधिवत चल रही थी, जबकि दस्तावेज प्रत्येक वर्ष पहुंच रहें हैं, यानि की भर्ती प्रक्रिया के दस्तावेज़ विभाग में पहुंचने बाद उन दस्तावेजों के जांच की आवश्यकता नहीं समझी जाती है और फाइल को कहीं भी ठूंस दिया जाता है क्योंकि स्थिति तो ऐसा ही दर्शा रही है, अगर दस्तावेजों की जांच की जाती तो शायद पहले या दूसरे वर्ष में ही यह त्रुटि पकड़ में आ जाती। अगर शिकायत नहीं पहुंचती तो ऐसा सब कुछ कई और वर्षों तक लगातार चलता ही रहता, मान लीजिए कि शिकायत 10 वर्ष बाद पहुंचती, तो सोचिए ऐसे विधार्थियों की संख्या 300 के ऊपर पहुंच चुकी होती। इस लापरवाही का जिम्मेदार कौन है? क्या सिर्फ शिक्षण संस्थान ही पूर्णतः दोषी है या फिर इनमें भी कई सफेदपोश हस्तियों की भूमिका है? आखिरकार राज्य में शिक्षा विभाग में एक के बाद एक करके कई घोटाले,  घपले व फर्जीवाड़े सामने आ चुका है जिससे प्रदेश में शिक्षा का स्तर दिन प्रतिदिन गिरता ही जा रहा है। प्रदेश की आम जनता इससे खासा परेशान है मगर राज्य सरकार के ढुलमुल रव्वैये व लापरवाही ने शिक्षा का कबाड़ा करके रख दिया है, शिक्षा खुद में अशिक्षित होती जा रही है मगर न ही राज्य सरकार और न ही मंत्री व उच्चाधिकारी इस गिरते स्तर से जरा सा भी चिंतित है और न ही उनकी ऐसी कोई मंशा ही दिखाई दे रही है जिससे कि शिक्षा स्तर में सुधार हो सके। बहरहाल आईटी कॉलेज में मैनेजमेंट कोटे से एडमिशन लेकर इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने वाले 130 छात्र-छात्राओं का भविष्य अधर में लटक सकता है। 
 प्रवेश तथा फीस विनियामक समिति (एएफआरसी) ने मैनेजमेंट कोटे से एडमिशन की प्रक्रिया को गलत ठहराते इस सुविधा का लाभ पाने वाले इंजीनियरिंग छात्रों की डिग्री व प्रवेश रद्द करने की अनुशंसा की है। एएफआरसी के अनुसार, कोटे के तहत एडमिशन देने नियमों को दरकिनार किया गया है। लिहाजा ऐसे छात्र-छात्राओं की डिग्री अवैध घोषित कर दी जानी चाहिए। इसके साथ ही आईटी कॉलेज पर 10 लाख रुपए का जुर्माना वसूलने की अनुशंसा भी की गई है। आईटी कॉलेज कोरबा में वर्ष 2008-09 से 2013-14 के बीच मैनेजमेंट कोटा का इस्तेमाल कर प्रतिवर्ष 25 से 30 छात्र-छात्राओं को बीई के स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश दिया गया। इस सिस्टम में खामियां, दुरूपयोग व गड़बड़ी की शिकायतों के मद्दनेजर शासन के निर्देश पर सत्र 2014-15 में ही मैनेजमेंट कोटा खत्म कर दिया गया। आईटी कॉलेज से मिली जानकारी के मुताबिक इन 6 सालों में करीब 130 छात्र-छात्राओं को मैनेजमेंट कोटे का इस्तेमाल कर इंजीनियरिंग में एडमिशन प्रदान किया गया है। बताया जा रहा है कि भिलाई के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में भी मैनेजमेंट कोटा से प्रवेश में गड़बड़ी की शिकायत एएफआरसी से की गई थी। इसके बाद एएफआरसी ने विभिन्न तकनीकी महाविद्यालयों में भी इस कोटा के तहत दिए गए एडमिशन की विस्तृत जांच करते हुए राज्य शासन व छत्तीसगढ़ स्वामी विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय (सीएसवीटीयू) को प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए मैनेजमेंट कोटे से दिए गए एडमिशन व इस सुविधा का लाभ लेकर इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं का प्रमाण-पत्र रद्द करने की अनुशंसा की है। इस फैसले से उन 130 छात्र-छात्राओं के भविष्य पर एएफआरसी की कार्रवाई का खतरा मंडराने लगा है।

  फीस वापिस कर, सूचित करना होगा
सचिवालय, प्रवेश तथा फीस विनियामक समिति  (एएफआरसी), बैरन बाजार रायपुर के सदस्य (विधि) ने 17 जुलाई 2015 को आईटी कॉलेज कोरबा के प्राचार्य को एक निर्देश जारी किया है। यह निर्देश आईटी कॉलेज कोरबा में शिक्षण सत्र 2012-13 व 2013-14 में मैनेजमेंट कोटा के अंतर्गत प्रवेशित छात्र-छात्राओं के संबंध में जारी किया गया है। निर्देश में प्रवेश व फीस विनियामक समिति द्वारा 15 जुलाई 2015 को पारित संकल्प के अनुसार इन दो वर्षों में मैनेजमेंट कोटे से किए गए एडमिशन को अवैध घोषित कर दिया गया है। साथ ही इस दौरान कोटे से प्रवेश प्राप्त कर बीई की पढ़ाई कर रहे कॉलेज के 38 छात्र-छात्राओं को पत्र प्राप्त होने के सात दिनों के भीतर लिए गए सभी शुल्क चेक या डिमांड ड्राफ्ट (डीडी) के माध्यम से वापस कर प्रवेश निरस्त करने के निर्देश दिए गए हैं। जारी निर्देश के अनुसार कार्रवाई पूरी कर एएफआरसी को सूचित करने को कहा गया है।

* मैनेजमेंट कोटा - पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के तहत तैयार आईटी कॉलेज के करोड़ों के भवन में एनटीपीसी, एसईसीएल, सीएसईबी, पीआईएल, लैंको व बाल्को का अंशदान शामिल है। अंशदाता औद्योगिक संस्थान के प्रतिनिधियों को आईटी कॉलेज संचालन की बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (बीओजी) का ओहदा भी दिया गया है। अंशदान के एवज में प्रोत्साहन के लिए बीओजी के सदस्य प्रबंधनों को आईटी कॉलेज की कुल सीटों में 5 से 10 प्रतिशत सीट पर संस्थानों के कर्मचारियों के संतानों को प्रवेश की सुविधा दी गई व इसे मैनेजमेंट कोटा कहा गया। आईटी कॉलेज में ईईई, सिविल, मैकेनिकल, कंप्यूटर साइंस समेत 4 ब्रांच संचालित हैं। इसमें प्रतिवर्ष प्रथम वर्ष के प्रत्येक ब्रांच की 9 सीटों पर मैनेजमेंट कोटे के तहत प्रवेश के लिए आरक्षित किया गया था।

* राज्य में सूचना क्यों नहीं जारी की गई - मैनेजमेंट कोटे के लिए आईटी प्रबंधन द्वारा पीईटी की मेरिट लिस्ट के आधार पर चयनित छात्र-छात्राओं के अलावा शेष सीटों पर प्रत्येक औद्योगिक संस्थान से एक लिस्ट मंगाया जाता था। इस लिस्ट में शामिल छात्र-छात्राओं को मेरिट के आधार पर टॉप को कोटे से प्रवेश देने की प्रक्रिया अपनाई गई। एएफआरसी का कहना है कि यह लिस्ट केवल जिला स्तर पर औद्योगिक प्रतिष्ठानों से तैयार की गई थी, जबकि कॉलेज प्रबंधन को नियमानुसार राज्य भर के छात्र-छात्राओं को मैनेजमेंट कोटे के तहत एडमिशन ऑफर करना चाहिए था। एएफआरसी का कहना है कि कुछ औद्योगिक प्रतिष्ठानों का आपस में अपनी पसंद के अनुसार ऐसी लिस्ट तैयार कर नियमसंगत नहीं। छात्रों का कहना है कि प्रक्रिया में आंशिक त्रुटि के लिए छात्र- छात्राओं को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
  
क्या कहते है विधार्थी

* प्रिया -  बीई, पांचवा सेमेस्टर - आईटी कॉलेज की छात्रा प्रिया ने कहा कि बेहतर भविष्य के लिए आईटी कॉलेज में एडमिशन लिया। मैनेजमेंट कोटे  से इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए प्रवेश की सुविधा दी गई। एएफआरसी का जो निर्णय आया है, शायद वह हमारे हित में हो। मैनेजमेंट कोटा में प्रवेश के दौरान प्रक्रिया में जो भी खामियां बताई जा रही हैं मगर उनका हर्जाना तो हमें ही भरना पड़ेगा। आगे कहा कि यहां ढाई साल पढ़ाई हो चुकी है। अगर अब प्रवेश रद्द किया जाता है तो फिर हम कहां जाएंगें। हमारी पूरी मेहनत बेकार हो जाएगी और भविष्य भी चौपट हो जाएगा। एएफआरसी ने हमें बुलाकर पूछा था कि एडमिशन में क्या प्रक्रिया अपनाई गई। उन्होंने फैसला छात्रों के हित होने की बात कही, बशर्ते भर्ती प्रक्रिया गलत न हो।

* शहीन बानो - ट्रिपल-ई की छात्रा शाहीन का कहना है। कोई ऐसा नियम लागू करना चाहिए जो मैनेजमेंट कोटे से प्रवेश के दौरान ही नियम व प्रक्रिया की जांच-परख कर समय रहते प्रमाणित कर सके कि भर्ती प्रक्रिया पूर्णतः वैध है या अवैध है। कोटे से प्रवेश लेने वाले छात्रों को बाद में इस तरह की मुश्किलें और परेशानी से न जूझना पड़े। मैनेजमेंट दोबारा ऐसी गलती कभी न दोहराए ताकि जिस तरह हमारा भविष्य अभी खतरे में दिखाई दे रहा है, वैसी तनाव भरी परिस्थिति से किसी और को कभी-भी न गुजरना पड़े। जिस समिति ने ऐसा निर्णय लिया है उन्हें समझना चाहिए कि जिन छात्रों ने यहां चार साल पढ़ाई की, डिग्री लेकर विभिन्न क्षेत्रों में जॉब कर रहे हैं उनके साथ और 2 या 3 साल पढ़ाई कर चुके हैं ऐसे छात्रों के साथ अन्याय हो रहा है।

* उज्जवल तिवारी - द्वितीय वर्ष के छात्र उज्जवल तिवारी का ने बताया कि एएफआरसी के अनुसार कोई भी औद्योगिक प्रतिष्ठान अपने मनमुताबिक किसी मनचाहे छात्र के लिए आईटी कॉलेज में सीट एलॉट नहीं करा सकती। अगर ऐसा नियम पहले से ही लागू था, तो हमें एडमिशन ही नहीं देना था। अगर गलत प्रक्रिया अपनाकर एडमिशन दिया गया तो इसके जवाबदार हम नहीं। एडमिशन दिया है तो हमें डिग्री भी देनी होगी। जिन्होंने यहां चार साल पढ़ाई की उनकी डिग्री रद्द नहीं होनी चाहिए। उन्होंने विधिवत परीक्षाएं पास करके डिग्री हासिल की है। एएफआरसी हमारा एडमिशन या डिग्री की मान्यता रद्द करती है तो इसके जवाबदार हम नहीं है। फिर भला खामियाजा हम क्यों भुगतें।

* अनामिका पाराशर - आईटी कॉलेज की छात्रसंघ अध्यक्ष अनामिका पाराशर ने कहा कि पूरी गलती मैनेजमेंट की है। अगर ऐसा करना ही था तो पहले करते, अब ऐसी स्थिति में जहां हम बीच मझधार में हैं, सीधे कॉलेज से निकालने नोटिस जारी करना गलत है। एएफआरसी का कहना है कि चार साल पहले मैनेजमेंट कोटा बंद कर दिया गया पर हमारी जानकारी में दो साल पहले ही बंद किया गया। जुर्माना वसूली कॉलेज से करें, इस तरह हमारा भविष्य क्यों बर्बाद कर रहे हैं। वे हमें पैसे वापस करके हमारा भविष्य तो वापस नहीं लौटा सकते। मैंने खुद काउंसिलिंग के दौरान शंकरा-2 का ऑप्शन इसीलिए छोड़ा था क्योंकि मैनेजमेंट कोटा के जरिए घर के पास ही आईटी कॉलेज में एडमिशन का मौका मिला।
    

खास बिंदुओं पर एक नजर

-वर्ष 2008-09 से 2013-14 तक कुल 6 बैच पर हुआ मैनेजमेंट कोटा से एडमिशन।

-एनटीपीसी, एसईसीएल, सीएसईबी, पीआईएल को पूरे 6 वर्ष मिली सुविधा।

-बाल्को को पहले वर्ष 2008-9 तथा लैंको को अंतिम वर्ष 2013-14 में दिया कोटे का लाभ।

-पीपीपी के तहत कर्मचारी कल्याण की दृष्टि से कर्मचारियों के बच्चों को दिया गया प्रवेश।

-एएफआरसी ने की मैनेजमेंट कोटे से प्रवेश पाने वाले छात्रों का एडमिशन निरस्त करने की अनुशंसा

-ऐसे छात्र-छात्राओं से आईटी प्रबंधन द्वारा ली गई फीस वापस करने कहा गया।

-कोटे से बीई स्नातक की डिग्री पाने वाले छात्रों की डिग्री रद्द करने की अनुशंसा।

-आईटी कॉलेज पर गलत प्रक्रिया अपनाने 10 लाख का जुर्माना वसूली की अनुशंसा।

संबंधित नस्ती उच्चाधिकारियों को अग्रेषित किया जा चुका है। अब यह मामला उनके पास विचाराधीन है, अतः इस पर अब मेरे द्वारा कोई भी टिप्पणी नहीं की जा सकती। अब उच्चाधिकारी इस मामले में अवलोकन कर कार्रवाई करेंगे और वे ही उचित जानकारी दे सकेंगे। - जीएल सोनकर, प्रभारी प्राचार्य

 इंजीनियरिंग की पढ़ाई प्रति सेमेस्टर तीन से चार हजार महंगी
रायपुर। इंजीनियरिंग की पढ़ाई इस साल से प्रति सेमेस्टर तीन से चार हजार रुपए महंगी हो जाएगी। प्रवेश एवं फीस विनियामक समिति (एएफआरसी) ने सत्र 2014-15 से 2016-17 तक के लिए निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों की फीस तय कर दी है। इसमें सभी निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों के बीई पाठ्यक्रम की फीस में प्रति सेमेस्टर 7 से 10 फीसदी तक इजाफा किया गया था। उल्लेखनीय है कि सत्र 2011-12 से 2013-14 तक इंजीनियरिंग कॉलेजों की फीस प्रति सेमेस्टर 28 से 32 हजार रुपए तक थी। इसमें अगले तीन वर्ष के लिए बढ़ोतरी करके बीई की फीस 31 से 34 हजार रुपए तक पहुंचा दिया गया है। एएफआरसी के मुताबिक फीस का निर्धारण निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में उपलब्ध सुविधा व संसाधनों के आधार पर की गई है। एएफआरसी ने सभी निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों से अगले तीन साल के लिए फीस बढ़ोतरी के लिए प्रस्ताव मंगाए थे। प्रस्ताव के साथ ही कॉलेजों के पिछले तीन साल की ऑडिट रिपोर्ट व अन्य उपलब्धियों की जानकारी मंगाई गई थी, जिसमें फैकल्टी की सैलरी सहित अन्य सुविधाएं शामिल हैं।

* डेढ़ लाख तक का प्रस्ताव - एएफआरसी को ज्यादातर इंजीनियरिंग कॉलेजों ने सालाना फीस 90 हजार से एक लाख 40 हजार रुपए तक किए जाने का प्रस्ताव दिए थे। इनमें दिशा इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी, रायपुर ने सालाना एक लाख 40 हजार रुपए तय किए जाने का प्रस्ताव दिया था। इसी तरह ओपी जिंदल रायगढ़ ने एक लाख 20 हजार रुपए, आरआईटी रायपुर ने 90 हजार, शंकराचार्य भिलाई ने 90 हजार, रूंटगा ग्रुप ने 95 हजार, मैट्स यूनिवर्सिटी ने सालाना 80 हजार रुपए का प्रस्ताव दिया था।

* एएफआरसी ने तीन साल के लिए जो फीस तय की है, उसमें ट्यूशन फीस, ग्रोथ एंड डिवेलपटमेंट चार्ज और अन्य खर्च शामिल हैं। इसके अलावा संस्था में पहली बार प्रवेश पर 1500 रुपए काशन मनी केवल एक बार देना होगा। इसके अलावा ऐच्छिक सुविधाओं जैसे मेस, बस, छात्रावास आदि के लिए वास्तविक खर्च या न लाभ न हानि के आधार पर शुल्क लिया जा सकता है। छात्रों की अनुपस्थिति के लिए नियमों में प्रावधान न होने पर, कोई भी संस्था छात्र से अर्थदंड (फाइन) नहीं ले सकती है। कक्षाओं से अनुपस्थिति के लिए फाइन या अर्थदंड लेने के लिए संस्था अधिकृत नहीं है। कक्षाओं से अनुपस्थिति के संबंध में विश्वविद्यालयों के प्रावधानों व निर्देशों के आधार पर ही कार्रवाई की जाएगी।

फीस वसूली की शिकायतें अधिक
तय फीस से अधिक फीस की वसूली को लेकर सबसे अधिक शिकायतें विभाग को प्राप्त होती है। सूत्रों के मुताबिक एएफआरसी में पिछले तीन महीनों में छात्रों से अवैध वसूली की शिकायतें अधिक आई हैं। इसमें फाइन के नाम पर अवैध वसूली, तय से अधिक फीस लेना, कॉलेज द्वारा अंक सूची की मूल कॉपी जमा रखने सहित अन्य मामलों की करीब 30 शिकायतें की गई हैं। इनमें से ज्यादातर में अभी सुनवाई नहीं हुई है।

एएफआरसी में ये मामले लंबित हैं
1. सीसीईटी भिलाई द्वारा छात्रों से दाखिले के साथ एक-एक लाख रुपये वसूले जाने के मामलें में कॉलेज द्वारा ब्याज सहित पैसा वापस किया गया या नहीं, इसकी जांच पूरी नहीं की जा सकी है।

2. बिलासपुर के निजी बोर्ड की अंकसूची से सीएसवीटीयू में दाखिला लिए 12 स्टूडेंट्स के मामले पर कोई निर्णय नहीं हो सका है। मामले में करीब एक साल से जांच चल रही है।

3. प्रदेश भर के करीब दस नर्सिंग कॉलेजों की समय सीमा पूरी होने के बाद भी फीस तय नहीं की जा सकी है। इसके अलावा करीब आठ बीएड व अन्य कॉलेजों की फीस तय नहीं की गई है।