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वाराणसी - भगवान भरोसे चल रही है तहसील सदर

वाराणसी। सरकारी विभागों में होने वाली अनियमित्‍ताओं के सन्दर्भ में अक्सर सुनने में आता ही रहता है। अक्सर तहसीलों के सन्दर्भ में ऐसी ही अनियमित्ता की घटनायें सुनायी देती  हैं। अब जनता को इसकी आदत भी पड़ गयी है। मगर वाराणसी की तहसील सदर ने समस्त अनियमित्‍ताओं का रिकॉर्ड ही ध्वस्त कर दिया है। एक पत्रकार हित के काम को लेकर जब हम वाराणसी के तहसील सदर परिसर पहुंचे तो यहाँ हम लोगों को जिन अनुभवों से दो चार होना पड़ा, उसको देख कर हम खुद असमंजस में पड गए कि आखिर किस प्रकार यह तहसील चल रही है। आइये अपने अनुभव आपको भी बताते हैं।
चोरी की बिजली से चल रहा है जनसुविधा केंद्र
प्रत्येक तहसील में जनसुविधा केंद्र लोकवाणी सरकार द्वारा खोला गया है। यह केंद्र  निजी क्षेत्र के व्यक्तियों को दिया जाता है जिसमें निर्धारित शुल्क जनता से लेकर एक रसीद जनता को दी जाती है। यहाँ से आय प्रमाणपत्र, जाति प्रमाणपत्र, निवास प्रमाणपत्र निर्गत किये जाते हैं। जनता की सुविधा के लिए एकल पटल पर यह सभी कार्य होता है। नियमों के तहत तहसील के भवन को छोड़ कर समस्त व्यवस्था इस एकल पटल के मालिक को करनी होती है जैसे कंप्यूटर, जनरेटर, बिजली कनेक्शन इत्यादि। वाराणसी के सदर तहसील में भी इन्हीं सब नियमों के तहत यह केन्‍द्र दिया गया। परंतु यहाँ संचालक ने नियम को उठा कर ताक़ पर रख दिया है। इस एकल पटल हेतु संचालक ने जो पिछले 6 वर्षो से यह केंद्र चला रहे हैं और जिनके केंद्र में वर्तमान में 3 प्रिंटर, 10 कंप्यूटर, एक एसी और जनरेटर तो लगा रखा है परंतु आज तक कोई भी बिजली का कनेक्शन नहीं लिया है। सीधे पोल पर से केबल दौड़ा कर ये सज्जन बिजली का फ्री उपभोग कर रहे हैं। इस सम्बन्ध में जब हमने तहसीलदार महोदय से संपर्क कर उनकी प्रतिक्रिया ली तो जवाब बहुत ही हास्यपद रहा। तहसीलदार साहेब की माने तो यह सब उनको पता ही नहीं था। हां तहसीलदार साहेब को इस केंद्र की रोज़ शिकायत अवश्य मिलती है। बहुत ही हास्यप्रद स्थिति है कि तहसील के मुखिया को उनके ही परिसर के हालात नहीं पता हैं। इससे भी ज़्यादा अचम्भे की बात तो ये है कि लगातार 6 वर्षो से चल रहा ये गोरखधंधा बिजली विभाग के अधिकारियों की भी जानकारी से बाहर है। कैसे संभव है कि प्रत्येक तहसील दिवस में आने वाले उच्चाधिकारियों की नज़र से ये अभी तक बचा है। अाखिर क्या कारण है कि तहसीलदार साहब के नाक के नीचे होने वाली इस बिजली चोरी को आज तक तहसीलदार साहब देख नहीं पाये हैं। जब इस सम्बन्ध में हमने लोकवाणी संचालक के तौर पर बैठे एक महोदय जिन्होंने अपना नाम अमित बताया से पूछा तो उन्होंने अपना पक्ष जो रखा वो और ज़्यादा विचित्र था।  उन्होंने कहा " आपको सिर्फ यही एक केंद्र दिखा और कोई नहीं दिखा। हमारी लाइट के बारे में पूछने से पहले  पहले आप जाकर तहसीलदार से पूछो जो 10 रुपया लेकर केस की तारीख देते हैं। इस पर आप काम करो। जिलाधिकारी पर भी घूस लेने का आरोप लगाने वाले इन सज्जन ने कई वरिष्ठ पत्रकारों के नाम की धौंस दिखाई यहाँ तक की वाराणसी के एक बहुचर्चित सांध्य कालीन हिंदी दैनिक के मालिक का नाम बताकर खुद की रिश्तेदारी भी जुड़वा बैठे और उनसे फ़ोन पर बात भी करवा दी। ये और बात है कि हमने जब बाद में उनसे फ़ोन पर बात की तो उन्होंने उनको पहचानने से भी इनकार कर दिया। जो भी हो मगर चोरी की बिजली का खेल खुल्लम खुल्ला धड़ल्ले से चल रहा है। यही नहीं तहसील और उसके आस पास की सभी दुकानों पर भी बिजली कैनेक्शन नहीं है, सभी कटिया मार कर काम चला रहे हैं और बिजली कर्मियों को प्रतिमाह चढ़ाव चढ़ाते हैं। सूत्रो की माने तो जेई साहेब और लाइनमैन को प्रतिमाह चढ़ावा चढ़ाकर ये गोरखधंधा चल रहा है। परंतु यहाँ एक बड़ा प्रश्नचिन्ह तहसीलदार साहब की कार्यशैली पर लगता है क्योंकि लगभग सवा वर्ष पूर्व तहसीलदार के पद पर प्रोन्नत हुये तहसीलदार महोदय इसके पूर्व यहीं पर नायाब तहसीलदार के पद पर कई वर्षो से थे।
शौचालय में बंद रहता है ताला 
यहाँ तहसीलदार साहब के अपने चेंबर के पीछे शौचालय बना हुआ है। देख कर अचम्भा हुआ की इस शौचालय में ताला बंद था। तहसीलदार महोदय का इस सम्बन्ध में जवाब भी देखिये "वो ताला इस लिए बंद है क्योंकि जनता गन्दा कर देती है शौचालय को"। जवाब तो विचित्र ही है, भाई शौचालय जनता के लिए बनवाया है तो जनता उसका उपयोग करेगी और जब उपयोग होगा तो गन्दा भी होगा। और सरकार द्वारा तहसील में सफाई कर्मी का वेतन भी वितरित किया जाता है तो उस सफाई कर्मी का फिर कार्य क्या है क्यों उसको वेतन मिलता है।
सभी कर्मचारियों ने रख रखा है अपना निजी सहायक
हमारे तहसील जाने का मकसद कुछ और ही था। सभी अनियमित्तायें तो वहां जाने पर नज़र में आईं मुख्य उद्देश्य था कि एक स्वर्गीय पत्रकार की विधवा की सहायता हेतु पत्रावली पर जाँच हेतु गए सज्जन ने उस बेसहारा बेवा से 500 रुपया माँगा था न देने पर फरवरी से जाँच आज तक नहीं पहुंची थी। तहसील पहुंचने पर जब उक्त सज्जन के सम्बन्ध में पता किया तो जानकर बहुत अचम्भा हुआ कि वो सज्जन सरकारी कर्मचारी भी नहीं थे और जाँच करने हेतु गए थे। वो सज्जन लेखपाल के निजी सहायक थे। सुनकर हम आश्चर्य चकित रह गए कि लेखपाल भी निजी सहायक रखता है। मगर जब पता किया तो जो कुछ पता चला वो हमको अचम्भे में डालने के लिए काफी था। लेखपाल छोड़िए साहेब यहाँ के लगभग हर चपरासी तक ने अपना निजी सहायक रख रखा है। अमीन इसमें सबसे आगे है। एक अमीन 3-4 निजी सहायक रखे है। खुद तहसीलदार साहेब के समस्त आदेशों को टाइप करने वाले सज्जन तहसीलदार साहब के अलहमद के निजी सहायक हैं। इन निजी सहायकों का काम ऊपर की कमाई से चलता है। आप इनकी कमाई का अंदाज़ा इससे लगा सकते है कि इन निजी सहायकों के पास खुद की महँगी बाइक और महंगे मोबाइल फ़ोन होते हैं। उक्‍त सुरेन्द्र साहब जो लेखपाल के निजी सहायक हैं के पास एप्पल का महंगा मोबाइल, एक महँगी मोटरसाइकिल थी। इससे बड़ा अचम्भा तो उस समय हुआ, जब हम अपनी समस्या को लेकर तहसीलदार महोदय के सामने बैठे थे। उन्होंने लेखपाल को बुलाया और लेखपाल उस व्यक्ति हेतु तहसीलदार महोदय को खुद कह रहा है कि वो मेरा सहायक है और फिर वो सहायक स्वयं तहसीलदार महोदय के सामने आकर वो जाँच का कागज़ उनको उपलब्ध करवाता है। ये वाकई चोरी और सीना जोरी वाली कहावत को चरितार्थ करता है। तहसील के रिकॉर्ड रूम में प्रत्येक लिपिक के निजी सहायक है जो कई वर्षो से हैं कोई भी काम करने में ये सहायक सक्षम होते हैं। यहाँ तक की नोटिस जो तामील हेतु यहाँ चपरासियों को दी जाती है उसका तामिला चपरासी न करके उनके सहायक करते हैं। यही नहीं किसी की नोटिस किसी और को देना हो तो आप इनसे संपर्क करे ये तत्काल ही सिर्फ एक हरी नोट पर कुछ भी कर देने में सक्षम होते हैं। अमीन छोड़िये साहेब अमीन को मिले चपरासी भी अपना सहायक रखते हैं। कई चपरासी तो ऐसे भी हैं जो एक नहीं दो तीन सहायक रखते हैं। कुछ कहा तो यूनियन के नाम पर ज़िंदाबाद मुर्दाबाद करने की धमकी अलग दे डालते हैं। सब मिलाकर अनियमित्ता का पूरा दलदल है वाराणसी का सदर तहसील। मगर बड़ा प्रश्न यह है कि आखिर हर तहसील दिवस पर यहाँ आने वाले उच्चाधिकारियों की नज़र इस पर कैसे नहीं पड़ती है। तहसीलदार महोदय द्वारा आज तक कोई कार्यवाही न करना उनकी कार्यशैली पर भी उंगली उठाता है।

(वाराणसी से तारिक़ आज़मी के साथ ज़ीशान अहमद व राजेंद्र कुमार गुप्त)