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संगठन हैं हजार, मदद को कोई नहीं तैयार। कहां जाये पत्रकार

नई दिल्‍ली। आज देश में पत्रकारों की रक्षा की शपथ लिए लगभग 25000 संगठन है। तकरीबन हर शहर में प्रेस क्लब हैं।सभी पत्रकारों के हित की बात करते है मगर सृष्टि के पहले पत्रकार महर्षि नारद से लेकर आज हर नुक्कड़ पर खड़ा समाज को आइना दिखाने वाला सच का प्रहरी, लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की संज्ञा लिए पत्रकार स्‍वयं सुरक्षित नहीं है।
अगर पुरातन काल पर ध्यान दें तो सृष्टि के पहले पत्रकार सच के प्रहरी नारद भी सुरक्षित नहीं थे, उनको भी कोई न कोई राक्षस सताता रहता था। उस समय संगठन और यूनियन नहीं हुआ करता थे। मगर आज हालात एकदम उलट हैं। आज हज़ारों की गिनती में पत्रकारों के संगठन हैं। फिर भी पत्रकारों पर हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। कारण केवल एक है कि पत्रकारों में एकता की कमी है। एकता वहां होती है जहां छोटे बड़े की भावना किसी में न हो। मगर आज ये हालात हैं कि मैं बड़ा पत्रकार, तू छोटा। मेरा बजता है डंका और लगी हुई है पत्रकारों की लंका। हर जगह मैं- मैं-मैं। कहीं हम तो है ही नहीं।अच्छा हुआ मेरे गुरु जी ने मुझे कलम का सिपाही बनाया न की पत्रकार। इसी अवधारणा से ऊपर उठते हुए हम होकर हमने एक संगठन All India Reporter's Association (AIRA) की संरचना की। अपनी संरचना में हमने सरकार के सामने भीख मांगने के बजाये खुद कुछ करने की ठान ली है और अपने सदस्यों को अनेक सुविधाओं समेत बीमा मुहैया करवाना सुनिश्चित किया है।वक्त को अपने साथ रखने के लिए सभी को एक उम्दा घडी, सब कुछ याद रहे इसके लिए एक डायरी, आपस में दिल का हाल जान सके तो एक सीयूजी सिम देने की व्‍यवस्‍था चल रही है। अब हम लड़ाई की मुद्रा में आ गये हैं। स्थापना के पहले 43 दिन में हमने देश के विभिन्न कोने में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई और 29 पत्रकारों को न्याय दिलवाया। जलने वाले जल रहे हैं पर हम अपना काम करते रहेंगे।

(तारिक आज़मी - जीबी न्‍यूज)