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लैंड बिल - बीजेपी के लिए आगे कुआं पीछे खाई

नई दिल्ली। भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ अधिकतर विपक्षी दलों की एकजुटता को देखते हुए बीजेपी आगे कुआं पीछे खाई वाली स्थिति में फंस गई है। राज्यसभा में एनडीए अल्पमत में है और वहां बिल का पास होना असंभव है। दूसरी तरफ अगर सरकार भूमि अधिग्रहण बिल जैसे अति संवदेनशील मसले पर संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाती है तो इससे बिहार और बंगाल में बीजेपी के खिलाफ माहौल बन सकता है, जहां विधानसभा के चुनाव होने हैं।
मोदी सरकार भूमि बिल 2015 को लेकर 'छवि की राजनीति' में फंस चुकी है। विपक्ष बिल को किसान विरोधी बताते हुए सरकार पर कॉर्पोरेट के पक्ष में काम करने का आरोप लगा रहा है। बीमा, माइनिंग और कोल बिल्स के मामले में सरकार संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाने की धमकी देकर राज्यसभा में अपना रास्ता आसान बना सकती थी, लेकिन भूमि बिल के मामले में ऐसा संभव नहीं है क्योंकि इससे लाखों परिवारों का हित जुड़ा हुआ है। लैंड बिल पर संसद का संयुक्त अधिवेशन बीजेपी को बिहार, पश्चिम बंगाल और असम के विधानसभा चुनावों में नुकसान पहुंचा सकता है। इन तीनों राज्यों में अगले एक सालों में विधानसभा चुनाव होने हैं। बिहार कृषि प्रधान राज्य है और वहां अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। आरजेडी-जेडीयू गठबंधन अभी से ही लोगों को यह बताने में जुट गया है कि अगर लैंड बिल पास हुआ तो इससे किसानों को नुकसान होगा। वहीं पश्चिम बंगाल में टीएमसी के साथ वामपंथी दल और कांग्रेस बीजेपी को घेर सकते हैं। ऐसी हालत में 2016 में होने वाले चुनावों में बीजेपी की संभावनाओं को बहुत बड़ा झटका लग सकता है। राज्य की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस सिंगूर और नंदीग्राम में हुए भूमि आंदोलन की वजह से आज सत्ता में है। असम भी ऐसा ही राज्य है, जहां बड़ी संख्या में आबादी जमीन पर निर्भर है और भूमि बिल के मामले में यहां भी बीजेपी को झटका लग सकता है। बेमौसम बारिश की वजह से देश के किसान पहले से ही तबाही का सामना कर रहे हैं और ऐसे में एनडीए सरकार की लैंड बिल को पास कराने की कोशिश से विपक्ष को बढ़त बनाने का मौका मिल सकता है। अभी तक केवल तीन बार संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाया गया है। सबसे पहली बार जवाहर लाल नेहरू के समय में संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाया गया था। 1961 में दहेज निरोधक कानून को लेकर संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाया गया था। उस वक्त दोनों सदनों में कांग्रेस बहुमत में थी, लेकिन नेहरू ऐक्ट के कुछ विवादित मुद्दों पर दोनों सदनों में एकसाथ चर्चा कराने के पक्ष में थे। दूसरी बार संयुक्त अधिवेशन इंदिरा गांधी सरकार ने बुलाया था ताकि बैंकिंग सर्विस कमिशन रिपील बिल 1978 को पास कराया जा सके। तीसरी बार वाजपेयी की सरकार ने विवादित पोटा ऐक्ट को लेकर 2002 में संयुक्त अधिवेशन बुलाया था।

(IMNB)