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महात्मा गांधी को कोई अपशब्द नहीं कह सकता - सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली 17 अप्रैल 2015. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि महात्मा गांधी को अपशब्द नहीं कहे जा सकते हैं और न ही उनके चित्रण के दौरान अश्लील शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता है। एक मामले की सुनवाई के दौरान गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कलात्मक स्वतंत्रता के नाम पर राष्ट्रपिता को कहे गए अपशब्दों को सही नहीं ठहराया जा सकता है।
देश की सर्वोच्च अदालत में एक मराठी कविता में गांधी के बारे में अभद्र भाषा का इस्तेमाल किए जाने से संबंधित एक मामले की सुनवाई हो रही थी। अदालत ने कहा कि गांधी को उच्च स्थान प्रप्त है। जज दीपक मिश्रा और प्रफुल्ल सी पंत की बेंच ने कहा कि 'विचारों की आजादी' और 'शब्दों की आजादी' में काफी अंतर है। विचारों की आजादी के नाम पर आप किसी के मुंह से कोई बात कहलवाकर सनसनी नहीं फैला सकते हैं। कोर्ट ने कहा, 'अगर किसी ने महारानी विक्टोरिया के मुंह से ये शब्द कहलवाए होते तो ब्रिटिश कैसे रिऐक्ट करते? भाषा की आजादी से कोई समस्या नहीं है, बल्कि इसके नाम पर गांधी को कुछ कहने से है।' बेंच ने इस मामले में सभी पक्षों की बहस सुनकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। बैंक ऑफ महाराष्ट्र के कर्मचारी और ऑल इंडिया बैंक एंप्लॉयीज एसोसिएशन की बुलेटिन मैगजीन के संपादक देवीदास रामचंद्र तुलजापुरकर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर अपने खिलाफ चल रहे मुकदमे को निरस्त करने की मांग की थी। उन्होंने 1994 में मराठी कवि वसंत दत्ताराय गुज्जर की 'गांधी माला भेटला होता' (मैं गांधी से मिला) नाम की कविता छापी थी। इसमें गांधी पर अपशब्द लिखने का आरोप है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने उनकी अपील ठुकरा दी थी। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में तय करेगा कि कि किसी सम्मानित ऐतिहासिक व्यक्ति के लिए कविता में इस्तेमाल की गई अभद्र भाषा या चिन्हों को कलात्मक अभिव्यक्ति की स्वतंत्र माना जा सकता है कि नहीं। देवीदास के वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि मराठी भाषा जानने वालों का कहना है कि यह एक व्यंगात्मक कविता है। बेंच ने सवाल किया, 'क्या महात्मा गांधी का सम्मान करना देश की सामूहिक जिम्मेदारी नहीं है? ये क्या है? आप एक आदर्श व्यक्ति का सम्मान नहीं कर सकते, पर उसे अश्लील शब्दों से नवाज सकते हैं, जिसने आपको कलात्मक स्वतंत्रता के रूप में ये आदर्श दिए हैं ?'

(IMNB)