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गोडसे नाम के कारण मुश्किल में शिव सेना सांसद

नासिक। आप तब क्या करेंगे जब आपके नाम को ही असंसदीय शब्दों की सूची में डाल दिया जाए ? नासिक से शिव सेना सांसद हेमंत गोडसे इस बात से बेहद आहत हैं कि गोडसे शब्द को संसद ने असंसदीय शब्दों की सूची में डाल दिया है। हेमंत ने संसद से बेहद संवेदनशील सवाल पूछा है।
उन्होंने लोकसभा और राज्यसभा ऑफिस के पत्र लिख गोडसे को असंसदीय शब्दों की सूची से निकालने की मांग की है। इन्होंने राज्यभा के चेयरमैन और लोकसभा स्पीकर को चिट्ठी लिख अनुरोध किया है। हेमंत ने लोकसभा और राज्यसभा ऑफिस से कहा है कि उनकी मांग पर तत्काल विचार किया जाए। हेमंत की चिट्ठी के जवाब में लोकसभा सचिवालय ने सहमति जताते हुए कहा है कि गोडसे को असंसदीय शब्दों की सूची में डालना एक गलती है। सचिवालय ने जवाब में कहा कि नाथुराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या की थी इसका मतलब यह नहीं है कि सदन से गोडसे शब्द को ही बाहर कर दिया जाए। हालांकि इस पर फाइनल फैसला लोकसभा स्पीकर करेंगी। सूत्रों का कहना है कि ऐसा 1956 में हुआ था। तब के लोकसभा में डेप्युटी स्पीकर सरदार हुकुम सिंह के निर्देश पर ऐसा किया गया था। हुकुम सिंह ने यह आदेश राज्य पुनर्गठन बिल पर बहस के दौरान दिया था। तब दो सांसदों ने नाथुराम गोडसे को एक साथ प्रसिद्ध आध्यात्मिक नेता बताया था। इसके बाद ही हुकुम सिंह ने गोडसे शब्द को असंसदीय कैटिगरी में डालने का निर्देश दिया था। हेमंत ने पत्र में लिखा था, 'संसद के रिकॉर्ड में गोडसे शब्द को असंसदीय सूची में डाल दिया गया है। इस वजह से इस शब्द का प्रयोग कोई नहीं कर सकता। मुझे पता है कि ऐसा क्यों किया गया। लेकिन मैं संसद के नोटिस में इस बात को लाना चाहता हूं कि गोडसे मेरे पूर्वजों का सरनेम है। यह सरनेम हम सैकड़ों सालों से लगा रहे हैं। मैं हैरान हूं कि किसी सांसद का सरनेम असंसदीय कैसे हो सकता है। यह बिल्कुल सच है कि मेरा सरनेम गोडसे होना कोई गुनाह नहीं है। इसके अलावा मैं अपना सरनेम बदल भी नहीं सकता क्योंकि यह मेरी पहचान है।'