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जिस ऐक्ट को खत्म करना चाहते थे, उसी के तहत मनमोहन पर केस

नई दिल्ली। मनमोहन सिंह की 24 साल की राज्यसभा सदस्यता भी उन्हें कोयला घोटाले में ट्रायल से नहीं बचा पाएगी। अदालत का कहना है कि पूर्व प्रधानमंत्री पर मुकदमा चलाने के लिए राज्यसभा के चेयरमैन हामिद अंसारी से इजाजत लेने की जरूरत नहीं है। दिलचस्प यह है कि सिंह पर भ्रष्टाचार निरोधक कानून के उस प्रावधान के तहत मुकदमा चल सकता है, जिसे वह हटाना चाहते थे।
भ्रष्टाचार निरोधक ऐक्ट के तहत हर मामले में किसी लोकसेवक पर मुकदमा चलाने के लिए 'उपयुक्त अथॉरिटी' की इजाजत लेनी होती है। अगर मंजूरी नहीं मिलती है, तो केस ट्रायल से पहले भी खत्म हो सकता है। सिंह के मामले में उपयुक्त अथॉरिटी अंसारी हैं। हालांकि, सीबीआई कोर्ट इससे असहमत है। सीबीआई के स्पेशल जज भरत पाराशर ने अपने आदेश में कहा, 'सीबीआई के जांच अधिकारी की तरफ से दायर स्टेटस रिपोर्ट के मुताबिक, डॉ मनमोहन सिंह भले ही अब भी राज्यसभा के मेंबर हैं, लेकिन जिस वक्त वह कोल मिनिस्ट्री की जिम्मेदारी संभाल रहे थे, उससे जुड़ा राज्यसभा का उनका कार्यकाल खत्म हो चुका है। उस वक्त कोल सेक्रेटरी रहे पी सी पारेख भी रिटायर कर चुके हैं। ऐसी परिस्थितियों में भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मामले पर कार्रवाई के लिए अनुमति लेने की कोई जरूरत नहीं है।' सिंह मुख्य तौर पर भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 13(1) (डी) के तहत कठघरे में हैं, जिसे उन्होंने 2013 में हटाने की वकालत की थी। हिंडाल्को से जुड़ी एफआईआर दायर होने के बाद सिंह ने सीबीआई के एक कार्यक्रम में यह बात कही थी। कोर्ट के आदेश में इस सेक्शन के तहत सिंह पर कार्रवाई को सही ठहराया गया है। सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार इस खास प्रावधान में संशोधन के लिए बिल पास नहीं कर सकी थी। सिंह ने दिसंबर 2013 में ईमानदार अधिकारियों के लिए सुरक्षा की जरूरत पर जोर देते हुए कहा था कि सरकार ने इसके लिए भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) बिल 2013 पेश किया है। सरकारी अधिकारियों ने बताया कि केस दायर करने के लिए मंजूरी के मसले को सिंह कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं, क्योंकि वह 1991 से लगातार राज्यसभा के सदस्य रहे हैं और उनका टर्म 2018 में खत्म होगा। एक अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं किए जाने की शर्त पर बताया, 'लोकसभा के उलट राज्यसभा लगातार चलती रहती है।' दिल्ली पुलिस ने कैश फॉर वोट मामले में बीजेपी सांसद अशोक अर्गल और अमर सिंह के खिलाफ कार्रवाई के लिए लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा के चेयरमैन से अनुमति मांगी थी। हालांकि, 2जी स्पेशल कोर्ट ने 2011 में कहा था कि पूर्व टेलिकॉम मिनिस्टर ए राजा और राज्यसभा सदस्य कनिमोझी के खिलाफ कार्रवाई के लिए सीबीआई को मंजूरी लेने की जरूरत नहीं थी, क्योंकि राजा ने लोकसभा सदस्य के तौर और कनिमोझी ने राज्यसभा के सदस्य के तौर पर ऑफिस का दुरुपयोग नहीं किया।

(IMNB)