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जाटों को मिला आरक्षण सुप्रीम कोर्ट ने खत्म किया

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सरकार के फैसले को रद्द करते हुए जाट आरक्षण को खत्म करने का फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि केवल जाति पिछड़ेपन का आधार नहीं हो सकता है। यह सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से होना चाहिए। यूपीए सरकार ने पिछले साल आम चुनाव से ठीक पहले अधिसूचना जारी करके जाटों को बीसी कैटिगरी में शामिल कर दिया था ।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस अधिसूचना को रद्द कर देना चाहिए। इसके साथ ही अब केंद्रीय नौकरियों और केंद्रीय शैक्षिक संस्थानों में जाटों को आरक्षण नहीं मिलेगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का नौ राज्यों में जारी जाट आरक्षण पर कोई असर नहीं पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर जाट नेता यशपाल मलिक ने कहा कि हम लोग इसके खिलाफ रिव्यू याचिका दायर करेंगे और आंदोलन करेंगे। उन्होंने कहा कि संसद को अधिकार है कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दे जैसा कि शाहबानो प्रकरण में हुआ था। यशपाल मलिक ने कहा कि इस देश में अपना हक कौन छोड़ता है, जो हम छोड़ देंगे। आज के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ओबीसी कैटिगरी में नई-नई जातियों को लगातार शामिल किया जा रहा है, किसी भी जाति को अभी तक इसमें से बाहर नहीं निकाला गया है। बेंच ने अपने फैसले में कहा, 'जाति एक महत्वपूर्ण कारक है, लेकिन आरक्षण के लिए यही एक आधार नहीं हो सकता है। अतीत में अगर कोई गलती हुई है तो उसके आधार पर और गलतियां करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। जाट जैसी राजनीतिक रूप से संगठित जातियों को ओबीसी की लिस्ट में शामिल करना अन्य पिछड़े वर्गों के लिए सही नहीं है। सरकारों को ट्रांसजेंडरों को ओबीसी कैटिगरी में शामिल करने पर विचार करना चाहिए।' लोकसभा चुनाव से पहले 4 मार्च 2014 को किए गए इस फैसले में दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हिमाचल, बिहार, मध्य प्रदेश, और हरियाणा के अलावा राजस्थान के जाटों को केंद्रीय सूची में शामिल किया गया था। इसके आधार पर जाटों को केंद्र सरकार की नौकरियों और उच्च शिक्षा में ओबीसी कैटिगरी के तहत आरक्षण का हक मिल गया था। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थीं। ओबीसी रक्षा समिति समेत कई संगठनों ने कहा था कि ओबीसी कमिशन यह कह चुका है कि जाट सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़े नहीं हैं।

(IMNB)