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पहले भी हुई हैं मंत्रालयों में जासूसी की घटनाएं

नई दिल्ली. केंद्र सरकार के महकमे में जासूसी कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी जासूसी के कई मामले सामने आए हैं। मोदी सरकार में परिवहन मंत्री गडकरी के घर जासूसी उपकरण मिलने की बात सामने आई थी। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के समय में भी जासूसी की खबरें आई थीं।
2014 के जुलाई महीने में परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के दिल्ली के घर से जासूसी उपकरण मिलने की खबर आई थी। जिस तरह के उपकरण मिले थे उस तरह के उपकरणों का इस्तेमाल अमेरिकी खुफिया एजेंसियां करती हैं। खबर आई थी की गडकरी के घर में सीक्रेट हाई पावर लिसनिंग डिवाइस लगी हुई पाई गई। 2013 में जनवरी में भारतीय जनता पार्टी के नेता अरुण जेटली के फोन टैपिंग मामला सामने आया था। इस मामले  में दिल्ली पुलिस के तीन कर्मियों समेत छह लोगों को गिरफ्तार किया गया था । इस मामले में कुल 10 लोग गिरफ्तार किए गए। 2012 में 16 फरवरी को यूपीए 2 सरकार में रक्षा मंत्री एके एंटनी के कार्यालय में जासूसी का मामला सामने आया था । सैन्य गुप्तचर शाखा का दल साउथ ब्लॉक में एंटनी के कक्ष नंबर 104 में जासूसी उपकरण पकडने वाले उपकरण से कमरे की जांच कर रहा था। इस उपकरण के बीप-बीप बोलने से रक्षा मंत्रालय में सनसनी फैल गई और आनन फानन में गृह मंत्रालय को सूचित कर गुप्तचर ब्यूरो के जांच दल को उसी शाम तलब कर लिया गया था। बाद में रक्षा मंत्रालय ने खुफिया ब्यूरो को इसकी जांच का जिम्मा सौंपा। 2011 के जून महीने में तत्कालीन वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी के कार्यालय में जासूसी की रिपोर्ट आई थी । नार्थ ब्लाक स्थित दफ्तर में कथित रूप से ‘स्नूपिंग डिवाइसेज’ पाए गए थे। वित्त मंत्री के दफ्तर में कुल 16 जगह चिपकाने वाली चीजें मिली थीं।1985 में भारतीय सियासत में सबसे पहला जासूसी का मामला प्रधानमंत्री राजीव गांधी के दफ्तर में जासूसी का था। इस पर बहुत हंगामा हुआ था। 10 से ज्यादा लोग गिरफ्तार किए गए थे लेकिन बाद में इस पर परदा डाल दिया गया था।

(IMNB)